पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/७

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लाखों स्त्री पुरुषों से पैरो को पुजाते हैं। धर्म ही के कारण भंगी प्रातःकाल होते ही अपनी बहू बेटियों सहित औरों का मलमूत्र सिर पर ढोता है, धर्म ही के कारण आज हिन्दू, मुसलमान और ईसाई एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हैं।

धर्म के कारण ही सिक्खों ने मुग़ल काल में अंग कटवाये बच्चों को दीवार में चुनवाया, धर्म ही के कारण रोमनकैथालिकों के भीषण अत्याचार की भेंट लाखों ईसाई हुए, धर्म ही के कारण नीरों ने ईसाइयों को मसाल की भांति जलवाया। धर्म ही के कारण मुसलमानों ने पृथ्वी भर को रोंद डाला और मनुष्य के गर्म खून में तलवार रंगी। धर्म ही के लिये ईसाइयों ने प्राणों का विसर्जन किया।

आज धर्म के लिये सिपाही युद्ध-क्षेत्र में सन्मुख के मनुष्य को मारता है, धर्म ही के कारण वेश्याएं अपनी अस्मत बेचती हैं, धर्म ही के कारण कसाई पशु वध करता है। धर्म ही के कारण जीवहत्या करके मन्दिरों में बलि दी जाती है।

मैं जानना चाहता हूं कि सारी पृथ्वी में हज़ारों वर्ष से ऐसे उत्पात मचाने वाला, यह महाभयानक धर्म क्या वस्तु है। यह क्यों नहीं मनुष्य को मनुष्य से मिलने देता? क्यों नहीं मनुष्य को शान्ति से रहने देता? क्यों नहीं मनुष्य को आज़ाद होने देता? इसने शैतान की तरह दिमाग़ को गुलाम बना लिया है। जो मनुष्य जिस रङ्ग में रङ्गा गया, उस के विरुद्ध नहीं सोच सकता—प्राण दे सकता है, यह इस प्रबल शक्तिशाली धर्म की करामात है।