पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/६२

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लिकस्त सन् २६० में रोम की ईसाइयों की मण्डली का अध्यक्ष लिकस्त नाम का मारा गया। जब नगर के अधिकारी ने सुना कि मण्डली के पास बड़ी भारी धन सम्पति है तो लौरिन्तिय नामक प्रधान सेवक को बुलवाकर उसने आज्ञा दी कि सब धन हाज़िर करें। उसने कहा—सब धन सम्पति को संभालने और उसका बीजक बनाने के लिये मुझे तीन दिन का अवकाश दीजिये।

तीसरे दिन वह समस्त रोम के कंगालों को इकट्ठा कर प्रधान के महल में आ हाज़िर हुआ, और प्रधान से कहा—कि हमारे प्रभु की सम्पत्ति को संभालियेगा। आपका सारा आंगन सुनहरे पात्रों से भरा पड़ा है। प्रधान ने बाहर आकर जब कंगालों का झुण्ड देखा तो आपे से बाहर होगया। और उसने ज्वालामय नेत्रों से उसकी ओर देखा—लौरिन्तिय ने कहा—आप क्रोधित क्यो होते हैं आप जिस सोने को चाहते हैं वह धरती की एक साधारण धातु है जो मनुष्यों को समस्त पापो में फंसाती है। वास्तविक ईश्वर का धन तो यही है। देखिये, कितने मणि, रत्न, स्वर्ण मुद्रा जगमगा रहे हैं। ये कुमारिकाये और विधवाये बड़े बड़े रत्न हैं। प्रधान ने डपट कर कहा—मुझसे ठट्ठा करता है, ठहर! तूने शायद मरने पर कमर कसली है। उतार कपड़े। उसे नंगा करके लोहे की बड़ी झझरी पर लिटाकर धीमी आंच से भूनना शुरू किया। वह धैर्य पूर्वक एक करवट भुनता रहा—तब उसने प्रधान को पुकार कर कहा—'यह पंजर तो पक चुका, अब दूसरी कर्वट भुनवाइये। दूसरी कर्वट लेने पर जब उसका जीवन