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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८

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वेश्या समझती है, कसब करना ही हमारा धर्म है, विवाहित होकर गृहस्थ बनना नहीं। अछूत समझता है, औरों का मैला ढोना ही हमारा धर्म है, उत्तम वस्त्र पहिनकर उच्चासन पर बैठना नही। ब्राह्मण सोचता है सब से श्रेष्ठ होना ही हमारा धर्म है, किसी की भी प्रतिष्ठा करना नहीं। सिपाही समझता है जिसकी नौकरी करते हैं, उसके शत्रु का हनन करना ही हमारा धर्म है, दूसरा नहीं। पुजारी समझता है, इस पत्थर को सर्व सिद्धि दाता भगवान् समझना ही हमारा धर्म है इससे भिन्न नहीं। मुसलमान समझता है, कि काफिर को कतल करना ही हमारा धर्म है दूसरा नहीं। विधवा समझती है मरे हुए पति के नाम पर बैठना, और सब के अत्याचार चुप-चाप सहना ही उसका धर्म है इसके विपरीत नहीं। जल्लाद समझता है कि अपराधी को फांसी देना ही धर्म है इसके विपरीत नही। गरज इस जादूगर धर्म के नाम पर पाप पुण्य अच्छा बुरा जो कुछ मनुष्य को समझा दिया गया है, मनुष्य उस में विवश हो गया है उससे वह अपने मस्तिष्क का उद्धार नहीं कर सकता।

इस धर्म को भिन्न भिन्न समयों में भिन्न भिन्न रीति से लोगों ने मनन किया। बहुत से लोगों ने उसे केवल आध्यात्मिक बताया। बहुतों ने शरीर के साथ भी उसका संसर्ग कायम किया। परन्तु जब से मनुष्य ने धर्म शब्द पहचाना, तब से धर्म के नाम पर—हत्या, पाखण्ड, छल, कपट, व्यभिचार, जुआ, चोरी, हराम खोरी, बेवकूफी, ठगी, धूर्तता, अपराध ओर पाप सभी प्रशंसा