पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(८०)

केवल भारतवर्ष ही में नहीं प्रत्युत किसी जमाने में सारे संसार की पुरानी जातियों में प्रचलित था। रोम, ग्रीस, मिश्र और दूसरी उन्नत जातियाँ भी देवताओ के सामने पशु हत्या करती थीं और इसे वे पवित्र कर्म मानती थी।

यदि विचार कर देखा जाय तो यह विधि यज्ञ भी हिंसाओं से चली।

यज्ञ में पशु बध की परिपाटी कब से चली—इस सम्बन्ध में ठीक ठीक प्रकाश नहीं पड़ता। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के साथ मध्य एशिया की जातियों का जो समय समय पर संघर्ष होता रहा था भारत की अनार्य जातियों का जो आर्यों से संपर्क रहा, उनसे ब्राह्मणो के यज्ञ में पशु वध प्रचलित हुआ। क्योंकि वे सभी चातियाँ बलिदान को पवित्र कार्य समझती थीं। यज्ञ में बलिदान देने के विषय मे शत पथ ब्राह्मण (१।२।३।७।८) में यह लिखा है—

"पहिले देवताओं ने मनुष्य को बलि दिया जब वह बलि दिया गया तो यज्ञ का तत्व उसमें से निकल गया और उसने घोड़े में प्रवेश किया, तब उन्होंने घोड़े को बलि दिया, जब घोड़ा बलि दिया गया तो यज्ञ का तत्व उसमें से निकल गया और उसने बैल में प्रवेश किया—तब उन्होंने बैल को बलि दिया—जब बैल बलि दिया गया तो यज्ञ का तत्व उसमे से निकल गया और उसने भेड़ में प्रवेश किया। जब भेड़ को बलि दी गई तो यज्ञ का तत्व उसमें से निकल गया, और उसने बकरे में प्रवेश।