पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८१

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किया। तब उन्होंने बकरे को बलि दिया, तो यज्ञ का तत्त्व उसमें से भी निकल गया और तब उसने पृथ्वी में प्रवेश किया। तब उन्होंने पृथ्वी को खोदा और उसे चाबल और जौ के रूप में पाया"

ब्राह्मण ग्रन्थों के बाद सूत्रकाल में ब्राह्मणों के विस्तृत वर्णनों को स्रोत सूत्रों में वर्णन किया गया है। ये स्मोत सूत्र बौद्ध काल तक बनते रहे और इनमें मांस का यज्ञों में खूब उपयोग होता रहा है।

बलिदान की संख्या यज्ञ के अनुसार होती थीं। अश्वमेध यज्ञ में सब प्रकार के पालतू और जंगली जानवर थलचर, जलचर, उड़ने वाले, रेंगने वाले और तैरने वाले मिलाकर ६०९ से कम नहीं होते थे।

कृष्ण यजुर्वेद के ब्राह्मण में यह व्यौरा लिखा है कि छोटे छोटे यज्ञों में विशेष देवताओं को प्रसन्न रखने के लिये किस प्रकार का पशु मारना चाहिये। गोपथ ब्राह्मण में बताया गया है कि उसका क्या क्या भाग किसे मिलना चाहिये। पुरोहित लोग जीभ, गला,

कन्धा, नितम्ब, टांग इत्यादि पाते थे। यजमान पीठ का भाग लेता था, और उसकी स्त्री को पेड़ के भाग से सन्तोष करना पड़ता था[१]


  1. अथातः सवनीयस्य पशोर्विभागं व्याख्यास्यामः; उद्धृत्यावदानि हनू सजिह्वे प्रस्तोतुः कण्ठः स ककुदः प्रतिहर्तुः। श्येर्नं पक्ष उद्गातुर्दक्षिणं पाशर्वं सांस मध्वयों:, सत्यमुपगात्रीणां सव्योंस: प्रति प्रस्थातुर्दविणा श्रेणी