सकता। जो निंदक अविचार से तथा वेद शास्त्र की मर्यादा का उल्लङ्घन करके इस प्रकार के सोम यागादि वैदिक कर्मों का उप- हास करते हैं, उनसे यज्ञ कर्ता लोग कम अहिंसावादी हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता। अहिंसा परम धर्म अवश्य है, पर उसमें भी अपवाद है। क्षत्रिय जिस प्रकार मृगया और युद्ध में हिंसा करते हैं, उसी प्रकार यज्ञ कर्ता यज्ञ विधि के कारण पशु हनन करते हैं।
यज्ञ में जिस रीति से पशु हनन होता है—वह शस्त्र वध की अपेक्षा कम दुखःदाई हैं।
उत्तर दिशा की ओर पैर करके पशु को भूमि पर लिटाना चाहिये, पश्चात् श्वासादि प्राण वायु बन्द करके नाक मुख आदि बन्द करे। इत्यादि सूचनाएं शास्त्रों में कही हैं।
उदीचीनां अस्यपदो निदधात्।
अन्तरे वोष्मांण वारयतात्॥ [ ऐ॰ ब्रा॰ ६।७]
तथा—
अमायु कृण्वन्तं संज्ञय यतात्॥ [तै॰ ब्रा॰ ३।६।६]
अर्थात्प—पशु का हनन उसे न्यून से न्यून दुःख देते हुए करना चाहिये।
पाठक स्वयं ही इस धर्म के पाप रूप को समझ सकते हैं।