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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८९

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छठा अध्याय

व्यभिचार

ईसा के पूर्व पांचवीं शताब्दि में वाबल के लोगों को देवी माई लिट्टा के मन्दिर में प्रत्येक स्त्री को अपने जीवन मे एक बार आकर अपने आपको उस परदेशी पुरुष को सौंप देना पड़ता था जो देवी की भेंट स्वरूप सबसे पहले उसकी गोद में पैसा फेंकता था। इस धार्मिक व्यभिचार का आधार यूरोप में इस विश्वास पर था कि मानवों की उत्पादक शक्ति प्रकृति की उर्बरता को बढ़ाने में एक रहस्यमय और पवित्र पभाव रखती है। कालान्तर में यह भी समझा जाने लगा कि देवी या देवता के पुजारियों के साथ सम्भोग करने से स्त्री के बाँझ होने का भय नही रहता। भगवत् पूजा में सम्भोग की पवित्रता में किसी को ऐतराज़ न था।