पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/९६

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पुरुष को नङ्गा करके स्त्री का नाम देबी, पुरुष का नाम महादेव धरते हैं। उनके हाथ में तलवार देते हैं—फिर उनकी गुप्तेन्द्रिय की पूजा की जाती है। तदन्तर उन दोनों को एक एक प्याला शराब दी जाती है—फिर उन्हीं के जूंठे पात्रो में सब पीते हैं। फिर प्रधान आचार्य 'भैरवोऽहं, शिवोऽहं' कह कर एक पात्र पीता है—उसके बाद फिर सब पीते हैं। इसके अनन्तर मांस, बड़े आदि एक बड़े वर्तन में रख कर सब एक साथ खाते पीते हैं और शराब पीते रहते हैं। उसके बाद पंचमी चलती है। सब मतवाले होकर चाहे जिसकी बहन, कन्या, स्त्री, माता से व्यभिचार करते हैं। यहाँ तक कि स्वपुत्री का भी परहेज़ नहीं होता। कभी कभी बहुत मतवाले होने पर मारपीट जूतम पैजार भी हो जाती है। किसी किसी को उल्टी हो जाती है—जो बमन को खा लेता है वह सिद्ध माना जाता है। लिखा है :—

'हलां पिवति दीक्षितस्य मन्दिरे सुप्तो निशायांगणिकागृहेषु।
. . . .. .. . . .. विराजते कौलव चक्रवर्ती॥'

अर्थात् जो कलाल के घर बोतल पर बोतल शराब गटक जाय और रात को वेश्या के घर जा सोवे। वह कौलव चक्रवर्ती है।

ज्ञान संकलनी तन्त्र में लिखा है—

"पाश बद्धो भवेज्जीवः पाशुमुक्तः सदाशिवः"

इसका वे यह अर्थ करते हैं—कि जो लोकलाज, शास्त्रलाज, कुल लाज और देश लाज की पाशो में बंधा है वह जीव है।