देखना पड़ा था। हमारे पास धन न था; पर अपनी वीरता के सामने हम राज और धन को कोई चीज़ नहीं समझते थे। अब हम किस मुँह से अपनी वीरता का घमण्ड करेंगे?––ओरछे की और बुन्देले की लाज अब जाती है।
कुलीना––क्या अब कोई आस नहीं है?
हरदौल––हमारे पहलवानों में वैसा कोई नहीं है जो उससे बाजी ले जाय।भालदेव की हार ने बुन्देलों की हिम्मत तोड़ दी है। आज सारे शहर में शोक छाया हुआ है। सैकड़ों घरों में भाग नहीं जली। चिराग़ रोशन नहीं हुआ। हमारे देश और जाति की वह चीज़ जिससे हमारा मान था,अब अन्तिम सांस ते रही है। भालदेव हमारा उस्ताद था। उसके हार चुकने के बाद मेरा मैदान में आना धृष्टता है,पर बुन्देलों की साख जाती है तो मेरा मिर भी उसके साथ जायगा। क़ादिरखाँ बेशक अपने हुनर में एक ही है,पर हमारा मालदेव कभी उससे कम नहीं। उसकी तलवार यदि भालदेव के हाथ में न होती तो मैदान जरूर उसके हाथ रहता। ओरछे में केवल एक तलवार है जो क़ादिरखाँ की तलवार का मुँह मोड़ सकती है। वह भैया की तलवार है अगर तुम ओरछे की नाक रखना चाहती हो,तो उसे मुझे दे दो। यह हमारी अन्तिम चेष्टा होगी। यदि इस बार भी हार हुई तो ओरछे का नाम सदैव के लिए डूब जायगा!
कुलीना सोचने लगी, तलवार इनको दूँ या न दूँ। राजा रोक गये हैं; उनकी आज्ञा थी कि किसी दूसरे की परछाहीं भी उस पर न पड़ने पाये। क्या ऐसी दशा में मैं उनकी आज्ञा का उल्लंघन करूँ, तो वे नाराज़ होंगे ? कभी नहीं। जब वे सुनेंगे कि मैंने कैसे कठिन समय में तलवार निकाली है,तो उन्हें सच्ची प्रसन्नता होगी। बुन्देलों की प्रान किसको इतनी प्यारी है ? उनसे ज्यादा ओरछे की भलाई चाहनेवाला कौन होगा ? इस समय उनकी प्राशा का उल्लंघन करना ही आज्ञा मानना है। यह सोचकर कुलीना ने तलवार हरदौल को दे दी।
सबेरा होते ही यह ख़बर फैल गई कि राजा हरदौल कादिरखाँ से लड़ने के लिए जा रहे हैं। इतना सुनते ही लोगों में सनसनी-सी फैल गई और चौंक उठे। पागलों की तरह लोग अखाड़े की भोर दौड़े। हर एक आदमी कहता था कि जब तक हम जीते है, महाराज को लड़ने नहीं देंगे। पर जब लोग अखाड़े