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पृष्ठ:नागरी प्रचारिणी पत्रिका.djvu/३३

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१६८
नागरीप्रचारिणी पत्रिका

१६८ मागरीप्रचारिणी पत्रिका है। रचयिताओं का वृत्त नहीं मिलता; पर ग्रंथस्वामी (महंत चिट, बड़ा- गाँव, बलिया), जो इन्हीं के अनुयायी है,से पता चला कि बावरी साहिबा, धीरू साहब और यारी साहब मुसलमान थे। बावरी साहिबा अकबर के पहले वर्तमान थीं। इन्होंने एक अलग पंथ चलाया, जिसका नाम आगे चलकर सत्यनामी पंच पड़ा। जगजीवनदास ने इसका विशेष प्रचार किया। यारी साहब शाही घराने के थे; केशवदास, शाहफकीर तथा हस्तमुहम्मद इनके शिष्य थे। विरंच गोपाई को 'शब्दावलो' नामक रचना मिली है, जिसमें ज्ञान, वैराग्य और भक्ति विषयक उच्चकोटि के अनेक पद हैं। रचना और लिपि-काल प्रज्ञात है। भाषा में भोजपुरी और मैथिती का मिश्रण है। रचयिता ने अपने लिये दो अन्य नाम जनविरंच और विरंचराम भी प्रयुक्त किए हैं। रचना द्वारा इनका और कोई विवरण प्राप्त नहीं होता, पर ग्रंथ-स्वामी के कथनानुसार ये बलिया जिले के अंतर्गत गढ़पार के पास दामोदरपुर के निवासी एवं जाति के पांडेय ब्राह्मण थे। इनके वंशज अभी तक उक्त प्राम में हैं। ये सिद्ध महात्मा थे। इनको मृत्यु हुए साठ-सचर वर्ष हो गए हैं। प्रेमाख्यानक कवि प्रेमाख्यानक कवियों में से दुखहरगा और रतनरंग उल्लेखनीय हैं। दुवारण को तीन रचनाएँ 'पुहुपायतो', 'भक्तमाल' और 'कवित्त मिली हैं। प्रथम ग्रंथ जायसीकृत 'पदमावत' की तरह प्रेमाख्यानक काव्य है। इसका रचना-काल संवत् १७२६ वि० और लिपि काल संवत् १८६७ वि० है। शेष दो रचनाओं का विषय भक्ति है। इन हस्तलखों में रचना-काल और लिपि-काल नहीं है। कवि जाति के कायस्थ तथा गाधोपुर (गाजीपुर) निवासी थे। इनके पिता का नाम घाटमदास और गुरु का नाम मलूकदास था। ये औरंगजेब के समकालीन थे। संभवतः शिवनारायण स्वामी के गुरु दुखहरण ये ही है। प्रस्तुत खोज में रतनरग का 'छिनाई चरित' नामक ग्रंथ मिला है, जिसमें अलाउद्दीन द्वारा देवगिरि की राजकुमारी छिताई के अपहरण की कथा वर्णित है। कथा ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस कथा का उल्लेख बहुत पहले से काम्यों में हाता पा रहा है। 'पद्मा- वत' (जायसीकत) और 'वीरसिंहदेवचरित (केशवकृत) में भी यह नाम मिलता है। रचना काल नहीं दिया, पर लिपि-काल संवत् १६८२ होने से इसकी प्राचीनता प्रकट होती है। सूफी-धारा मे मित्र भारतीय पद्धति