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प्राचीन हस्तलिखित हिंदी-ग्रंथों की खोज

मावोन हस्तलिखित हिंदी-ग्रंथों की खोज पर प्रेमाख्यानक काश्यों को एक धारा पत पहले से बह रही थो; इसका प्रमाण 'विताई चरित' से भी मिलता है। लेखक का वृत्त प्राप्त है। रोति-ग्रंथकार रीति-प्रथकारों में से लाल या नेवजीलाल दीक्षित और श्रीधर. मुरलीधर प्रमुख लाल या नेवजीलाल दीक्षित ने नायिका-मेद विषयक 'विक्रमविलास या नवरस' प्रचलिखा । प्रस्तुत खोज में इसको दो प्रतियाँ मिली हैं, जिनमें से एक पूर्ण है और दूसरी अपूर्ण । एक में केवल लिपि-कासा मिलता है, जो संवत् १८७२ है, दूसरी में रखना- कान और लिपि-काल दोनों हैं, जो क्रमशः संवत् १६४० और संवत् १७२१ हैं। रचयिता किसी विक्रमसाहि राजा के प्राश्रित थे, जिनके बड़े भाई का माम भूपतिसाहि, पिता का नाम खेमकरण और पितामह का मल्लकल्याण था। इन्होने अपने अन्य दो प्रथों का भी उल्लेख किया है, जिनके नाम 'कथा माधयानल' और 'नाटक ऊपाहार हैं। श्रीधर मुरलीधर ने संस्कृत-नच 'चद्रालोक' और 'कुवलयानंद के आधार पर संवत् १७६७ में 'भाषाभूषण' नामक अलंकार-प्रथ रखा। इसकी शैको महाराज जसवंतसिहकृत 'भाषाभूषण' की सी हो है। हस्तलेख में लिपि काल नहीं है। कवि के प्राश्रयदाता नशव मशल्लेह थानबहादुर थे, जिनको प्राशा से प्रस्तुत प्रथबना । ग्रंथ में इन्होंने अपने नामों का उल्लेख जिस प्रकार किया है, उससे ये अलग अलग व्यक्ति नहीं, एक ही व्यक्ति ज्ञात होते हैं। कुछ अन्य नवीन कवि कुछ अन्य नवीन कवियों में से गोपाल या जनगोपाल और लखमसेनि उल्लेखनीय हैं। गोपाल या जनगोपाल का 'रासपंचाध्यायी' पमिका है,जो काव्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है। रचना-काल संवत् १७५५ वि. है तथा लिपि काल संवत् १८८१ वि० रचयिता का परिचय प्रमात है। लखनसेनि की विप्रलंभ श्रृंगार विषयक रचना 'काह की पारा. मासी या बारहमासा' मिली है, जिसकी दो प्रतियों के विवरण लिए गए है।लिपि-काल एक प्रति में है जो संवत् १७५ वि० है। रखना सरस है।भाषा में पूर्वीपन का मिश्रण है। जात रचनाकार संत संत में से धरनीदास और मनिधिदास उल्लेखनीय है। धरनीदास के निम्नलिखित छहयों के विवरण खिए गए:-