जैसे मिश्र जी ने हिंदी के इतिहास और उसकी आलोचना के आधार की स्थापना और संवर्द्धमा को वैसे ही श्री हरिऔध ने आधुनिक हिंदी-काव्य के आधार की। आधुनिक काल में श्री हरिओष हो ऐसे कवि हुए जिन्होने इसके सभी युगों की गतिविधि देखी और उनमें कार्य भीकिया। अभिप्राय यह कि भारतेंदु-युग से काव्य-रचना का प्रारंभ किया प्रगतिवाद-युग ( यदि चलते युग को यह नाम दिया जा सके) तक निरंतर इसे साल रखा।यहाँ इसका भी स्मरण रखना चाहिए कि इन्होंने सभी युगों के काव्य-विषय वथा उसकी शैली के अनुसार रखना प्रस्तुत की। यही कारण है कि वनमाषा तथा खड़ी बोली दोमे के काव्यों को रखना में भाप तत्पर दिखाई पड़ते हैं। आधुनिक काल के सभी युगों को शैलियों में भी मापने काव्य-रचना की।
आपके प्रियप्रवास' का महत्व माज भी कम नहीं हुआ है। इसकी रचना मापने उस समय की जब कुछ लोगों को खड़ी बोखी हिंदी में महाकाव्य की रचना होने में संदेह था। इस पर विशेषता यह कि यह सारा काव्य वर्णिक वृत्तों में लिखा गया।
भाषा-प्रयोग में भी आप अपने क्षेत्र में एक ही दिखाई पड़ते हैं। आप ने यह दिखा दिया कि सिख कवि 'प्रियप्रवास' की भाषा भी लिख सकता है और बोलचाल की भाषा भी।
इन दोनों साहित्यकारों ने 'सभा के प्रति अपनी कृपा-दृष्टि बराबर बनाए रखी। इन लोगों ने अनेक दृष्टियों से 'समा का पोषण किया,जिसके लिए वह इमकी तक्ष है।
हम इन साहित्यकारों के शोकसंतप्त परिवारों के साथ समवेदना प्रकट करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह इनकी दिवंगत मारमा को सद्गति दे।
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( पृष्ठ १७१ का शेष )
कथा का सरस वर्णन है। रखना-कास और लिपि काम अज्ञात है। प्रेम की महत्ता दिखाते समय रचयिता ने सुप्रसिद्ध प्रेमी व्यक्तियों में अवध के मवाव को भी रखा है। संभवतः संवेत पाजिएअनीशाह की मोर है। यदि यह ठीक है तो रचना वाजिदमलीशाह के समय में अथवा समके बाद लिखी गई होगी। इसको भाषा फारसीमिश्रित खड़ी बोली। इसमें भारतीयता निभाई गई है। कुछ छंद फारसी ढंग के।
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