अत्यंत शोक के साथ लिखना पड़ता है कि हिंदी-साहित्य पर सेमी तक कर काल की ष्टि नहीं हटी। कुछ ही दिन हुए श्री श्यामबिहारी मिश्र और श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔष' भी हमारे बीच नहीं रहे।
ये दोनों साहित्यकार हिंदी के आधुनिक काल के उन साहित्यकारों में से थे जिन्होंने हिंदी-भाषा और साहित्य की स्थापना और संवर्धना में पूर्ण योग दिया। भारतदु-युग के पश्चात् हिंदी-भाषा और साहित्य को समृद्ध करनेवालों में से ये प्रमुख हैं। इनको विशेषता यह रही कि इन्होंने भाषा और साहित्य के सभी अंगों की पुष्टि में हटाया, अर्थात् इन्होने कविता, नाटक, कथा, निबंध,आलोचना की सभी क्षेत्रों में थोड़ा-बहुत कार्य किया। हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचारात्मक पक्षको भी इन लोगों ने सुदृढ़ किया। साहित्य के सभी क्षेत्रों में कार्य करते हुए भी इन लोगों ने उसके कुछ विशिष्ट क्षेत्रों को अधिक समृद्ध किया। श्री श्यामविहारी मिश्र ने हिंदो के इतिहास तथा उसकी आलोचना के क्षेत्र को विशेष पुष्ट किया और श्रीहरिऔध ने उसके काव्य-क्षेत्र को।
हिंदी-साहित्य के इतिहास की सामग्री प्रस्तुत करने का कार्य आधुनिक काल में श्री श्यामविहारी मिश्र (मिश्रबंधुभों में से एक) ने किया। मिश्रबंधु-विनोद में हिंदी के प्राचीन कवियों का इतिवृत्त एक स्थान पर प्रस्तुत कर इन्हेंाने साहित्य का इतिहास प्रस्तुत करने के लिये सामग्री का चयन कर दिया। इसके द्वारा कुछ लुप्त कवियों का भी उद्घाटन हुआ। निस्संदेह कहा जा सकता है कि हिंदी-साहित्य के इतिहास के निर्माण के लिये जितने प्रमुख तत्वों की आवश्यकता थी उन सभी को इन्होंने एका किया। काशी नागरीप्रचारिणी सभा के खोज-विभाग में भी आपने कई वर्षों तक काम किया और इसके द्वारा भी इतिहास कीप्रभूत सामग्री सुखमकी।
हिंदी-साहित्य में आलोचना का आधार स्थापित करनेवालों में से
श्री श्यामविहारी मिश्र भी एक हैं। आलोचना के क्षेत्र में इनके कार्यों का महत्व समय को दृष्टि से भौंकना चाहिए । इस क्षेत्र में जब मापने कार्य आरंभ किया था तो बात थोड़ा कार्य हुमा था, अपने मालोचमा के कार्यको मागे बढ़ाया। हिंदी-नवरत्न' में हिंदी के प्रमुख नौ कवियों को संमुख लाकर अपने आलोचना क्षेत्र में विचार-विमर्श की सामग्री प्रस्तुत की ।