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‘छिताई-चरित’

कथाकार ने आक्रमण से रामदेव के प्राण पाने जो जो उपाय बताए। उनमें सुलतान के पास दिल्ली जाना या कन्या का विवाह कर उससे मैत्री स्थापित कर लेना भी है। किंतु पूरी कथा देखने से ज्ञात होता है कि प्रथम आक्रमण के समय सुलतान को रामदेव की कन्या का पता ही न था। यही कारण है कि काव्यानुरोध से कथाकार में प्रथम युद्ध में अलाउद्दीन का देवगिरि जाना नहीं कहा केवल निसुरत खाँ का ही आना कहा, जबकि इतिहास के अनुसार प्रथमाक्रमण के समय अलाउद्दीन और निसुरत खाँ दोनों देवगिरि गए थे। जान पड़ता है कि कथा में दोनों इस आक्रमणों की बातों का घालमेल हो गया है।

कथा के अनुसार दूसरा आक्रमण विशेष महत्वशाली है। अलाउद्दीन छिताई का रूप चित्र में देख मोहित हो गए और उसे प्राप्त करने के लिये उसने देवगिरि पर चढ़ाई की। इतिहास ने इस युद्ध को विशेष महत्व नहीं दिया है। उसने इस आक्रमण का कारण राजा रामदेव द्वारा कई वर्षों से राज-कर न चुकाना बताया है। इसपर सम्यक विचार करने से निष्कर्ष यही निकलता है कि कर न चुकाना राजनीतिक बहानामात्र था। बरानी लिखता है कि (संवत् १३६५ वि में) अलाउद्दीन के राज्य में चारों ओर सुख और शांति निवास कर रही थी। सुल्तान की कोई चिंता नहीं रह गई थी। तो भी दूसरे देशों के जीतने तथा असंख्य हाथियों और प्रभूत धन-राशि के संचित करने की अभिलाषा अभी शेष थी। अतः उसने एक विशाल वाहिनी का सघटन किया और मलिक नायय काफूर हजारदिनारी को उसका सेनापति बनाकर बहुत से सरदारों के साथ दक्षिण की ओर भेजा, आरिजे-ममालिक ख्वाजा हाजी को भी सेना के प्रबंध के लिये साथ कर दिया। अलाउद्दीन के बादशाह होने के बाद से मात्र तक इतनी विशाल सेना दक्षिण नहीं गई थी। दैवयोग कि घर रामदेव ने विद्रोही होकर कई वर्ष से वार्षिक कर भी नहीं दिया था। इसलिये आक्रमण का उपयुक्त बहाना भी मिल गया। इससे अलाउद्दीन का वास्तविक इरादा दक्षिण लूटने का ही सिद्ध होता है। यह बात तब और स्पष्ट हो जाती है अब वारंगल, चंदेरी आदि दक्षिण के प्रसिद्ध राजा को उसकी सेना ध्वस्त करती है। इसके लिये इतिहास छोटा या बड़ा कोई तर्क नहीं देता। ऐसी स्थिति में कथा का तर्क अवश्य विचारणीय है। चित्तौड़ की पद्मिनी या पद्मावती और गुजरात की कमलादेवी तथा देवलदेवी के वृतान्तों को मिला देखिए।


१—————सन् २००१