पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९३
नाट्यसम्भव।

संगीत अरु साहित्य की महिमा महा विस्ता रिनी॥

सब देवता। (हाथ जोड़ कर ऊपर देखते हुए)

जय जय वीनापानि, सरोजबिहारिनि माता।
नाटकरूपिनि, देवि, करौ नित सुखद प्रभाता॥
सब की रुचि या माहिं होय, सोई वर दीजै।
कृपा कटाछनि हेरि, चेगि दुख परि हरिलीजै॥

(आकाशवाणी)
ऐसाही होगा, ऐसाही होगा।
(अप्सराएं गाती हैं)

राग विहाग।

मिले, दोउ हरखि भरे अनुराग।
विहंसि बिहंसि चितवत चख चंचल अरसि परसि हिय पाग॥
यह जोरी जुग जुग चिरजीवै, प्रेम बीज जिय जाग॥
सहज सनेह सने सुख सेवहिं, निबहै सदा सुहाग॥

इन्द्र। अरी। हमारा सुख चाहनेवालियों! इस समय तुम लोगों की बधाई से हम बहुतही प्रसन्न हुए।

(सभों को आभरण प्रदान करता है)

सब अप्सरा। (अलङ्कार लेकर प्रणाम करके पहिरती हुईं) स्वामी की जय होय। महाराज इसी दिन के लिए हम सब ने भगवती उमा की आराधना की थी