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नाट्यसम्भव।
सब मिटै आप सन्तापं, सदा सुख होवै।
छिन में यह मन की सब व्याधिनको खोवै॥
इन्द्र। अहा! इस समय तुम लोगों ने अच्छी नाटक की महिमा गाई।
(आकाश मार्ग में महा प्रकाश होता है और सब उधर देखने लगते हैं)
(आकाशवाणी उसी राग में)
ह्वै मगन लोकत्रय वासी नव रस भीने।
पावैं मन चीते, या अभिनय के कीने॥
मुद मङ्गल या घर घर सदा नवीने।
दुख दारिद मिटै, रहै सुख सदा अधीने॥
(प्रकाश के साथ आकाशवाणी का अवसान)
इन्द्र। अहा! यह तो भगवती वागीश्वरी ने आशीर्वाद दिया।
नारद। सत्य है, नाटक का ऐसाही महात्म्य है।
(सब अप्सरा गाती हैं)
राग ईमन।
जय जयति जय वानी, भवानी, भारती, सुखकारिनी।
जय जय सरस्वति, भामिनी, भाषा, कलेस बिदारिनी॥
कवि कमलमुख में हरखि निसि दिन रुचिर मोद विहारिनी।