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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/१४

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नाट्यसंभव।

करत केलि कारंडव कलरव हंस मधुप सचुपाई।
तरल तरङ्ग रङ्ग बहु भांतिन दरसावै निपुनाई।
विहरै विबुध वारयनितनि सँग अङ्ग २ अरुझाई।
सोई सोभासदन सुहावन आनँद करन सवाई।
लगै आज सुनो केहि कारन हिय जनु खेद जताई॥

(नेपथ्य में)

अरे! यहां पर कौन इस समय गारहा है। ऐं। हमारे देवराज महाराज, महारानी शची देवी के विरह में ऐसे व्याकुल होरहे हैं और तुम लोगों को गाना सूझा है? (दानों डरकर इधर उधर देखने लगती हैं और हाथ में सोने का आसा लिए नन्दन वन का माली आता है)

माली। अरी मतवालियो! इस वन के अधिकारी विद्यावसु गन्धर्व ने आज्ञा दी है कि जबतक महारानी शची देवी आकर इस वन की शोभा नहीं बढ़ातीं, तबतक कोई यहां पर विहार करने या गाने न पावै। सावधान, सावधान!!

दोनो अप्सरा। हे माल्यवान! इस आज्ञा की चरचा हमलोगों के कानों तक नहीं पहुंची थी, पर अब ऐसा अपराध कभी न होगा।

माली। अच्छा २ (गया)

पहिली अप्सरा। (धुन बिरहनी)

याही कारन आज उदासी ह्यां छाई है।