पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/१५

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नाट्यसंभव।

याही सों सूनो लागत वन समुदाई है॥
दूसरी अप्सरा।
हाय चली ज्यों गई सकल सोभा या थल की।
सुनत स्रौन यह वज्र वैन छाती दुरि दल की॥
पहिली अप्सरा।
दीख पर नहिं वनितन संग देवन के परिकर।
सबै सोक में सने सची लेगए असुर धर॥
दूसरी अप्सरा।
क्यों न करें उद्धार मारि असुरन को रन में।
करें विहार बहोरि वारवनितन सों वन में॥
पहिली अप्सरा।
ह्वै है सबै संजोग यहै दुरदिन के बीते।
फिरि हैं सुमन सनेहसने लहि मन के चीते॥
दूसरी अप्सरा।
चलो जाइके करैं उमाआराधन हम सब।
ह्वै सुख सूरज उदै, मिटै दुख निसि को तम अब॥

(नेपथ्य में)

हाथ में वज्र लेकर असुरकुल संहार करने वाले महाराजाधिराज देवराज माधवी कुंज की ओर आते हैं। सब कोई हटो, बचो, सावधान हो जाओ।

(दोनों कान लगाकर सुनती हैं)

पहिली अप्सरा। सखी! महाराज इसी ओर आरहे हैं