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नाट्यसम्भव।


हमारे मन का बोझा कुछ हलका हो। यदि आपकी कृपा से जी ठिकाने होजाय तो फिर क्या कहना है? हां यह तो हम भी जानते हैं कि एक न एक दिन हमारी प्रानप्यारी फिर से हमारे अँधेरे को उंजेला करैंगी और यह भी निश्चय है कि उस सती स्त्री का कोई बाल तक बांका नहीं कर सकता। परन्तु इस समय कोई ऐसा उपाय निकालना चाहिए, जिसमें चित्त चंचल न हो। तभी उसके उद्धार और असुरों के संहार का भी प्रबंध अच्छी तरह हो सकैगा।

भरत। हाँ हां! जो भगवती ने कृपा की तो ऐसाही होगा।

इन्द्र। हृदय यातना अतुल यहै मेटे को आई।

भरत। समय पाय के मिटै आपुही दुखसमुदाई।

इन्द्र। बिना मन्त्री के कौन इन्द्र को मन हरखावै।

भरत। धीरजही के धरे, मनुज आगे सुख पावै॥

इन्द्र। सोरठा।
को करिसकै खान, प्यारी तेरे गुन अतुल ।
बेधत हैं मम प्रान, ज्योज्यों सोचत हाँ तिन्हें ॥

भरत। हे स्वर्ग की शोभा बढ़ानेवाले सहस्रलोचन! धीरज धरो। धीरज से दुरन्त दुख भी उतना दुखदाई नहीं होता, जितना कि थोड़ा दुःख अधीर होने से देखा! सुख दुख बराबर चक्र की शांति घूमा करते हैं। संताप विपतवृक्ष की छायामात्र है। अतएव ज्ञानी पुरुष