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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/२८

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नाट्यसम्भव।

रैवतक। पर तुमने तो कभी उपास नहीं किया होगा!

दमनक। नहीं किया सही, फिर इससे क्या? मुनियों की ऐसीरीत है तो एक न एक दिन हमारे भी करम फूटैंगे।

रैवतक। भला जब जो होगा देखा जायगा, अभी से क्यों इतने उबल रहे हो।

दमनक। रहो जी, कैसी बातें करते हो। घड़ी पर भी जी को चैन नहीं मिलता। जब देखो तव 'यह करो और वह करो' की फुलझड़ी छुटा करती है। चूल्हे में जाय ऐसा काम!

रैवतक। (हंस कर) और भाड़ में जा तू! पागल न जाने कहां का।

दमनक। (झिझक कर) वचा! तू तड़ाक करोगे तो दो झापड़ लगावेंगे। हटो! हम ऐसे उजड्ड से नहीं बोलते।

रैवतक। अच्छा! बुद्धिसागरजी क्षमा कीजिए, आप आप ही हैं आपकी क्या बात है। ल्यो जाने दो, आओ। थोड़ी देर जी बहलावै।

दमनक। अब तुम राह पर आए। (घूमकर) अच्छा। यहीं टहलो! कैसी सुन्दर छाया है।

(दोनों टहलते हैं)

रैवतक। क्यों भाई। कैसी ठंढी हवा चल रही है।

दमनक। इसीसे जी हराभरा होगया। थोड़ी देर टहलने सेही थकावट दूर होगई।