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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/२९

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नाट्यसम्भव।

'ताना दिरना दीम् तानानाना' (बगल बजाकर गाता है)

(मुलतानी तिताल)
तारे दानी तुम तनन दिरना।
तदीयनरे तदीयनरे तारेदानी यललो-
यलललुम लुमलुमं यलायलाय ललल
लेना॥ द्रद्रतुं द्रद्रतुं द्रतन दिरना॥

रैवतक। बस करो, बहुत भया। जरा इधर तो देखो। अहा! शरद ऋतु भी कैसी सुहावनी होती है? मानो प्रकृति देवी ने संसार की सर्व झंझटों से हाथ खींचकर शांति का सुन्दर जोड़ा पहिना हो! अहा!

कवित्त।
नील नभ बीच सेत वारिद विहार करैं-
सीतल समीर सुच्छ सोहै वेगरह है।
सथरे सरोवर सरोज विकसाने वेस-
गुप्तत मधुप ओप आनन जरद है॥
करत कलोलैं हंस आवत विदेसन तें-
वनत संजोगी माज मायल मरद है॥
पावन लगी हैं सुख अवला नवेली यह-
कैसी मनभावन सुहावन सरद है॥१॥

दमनक। ठहरो जी! बस लगे न एक संग चरखा ओटने। अरे हमारे पास तो नवेली हवेली हई नहीं। फिर हमें प्रानप्यारी का सुख दुःख कहां? यहां तों जोडू न