पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/३७

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नाट्यसम्भव।

डलिया उठाता है)

(आगे २ भरत और पीछे र दमनक का प्रस्थान)

परदा गिरता है।

इति तीसरा दृश्य।



चौथा दृश्य।
(परदा उठता है)
(स्थान नन्दनवन का एक प्रान्त)
(आगे र वीणा लिए भरत मुनि और पीछे २ मृदङ्ग लेकर दमनक और रैवतक आते हैं)

भरत। (घूम कर और देखकर) यद्यपि आजकल जाड़े के दिन है, पर यहां सदैव वसन्तऋतु ही विराजमान रहती है। अहा! फूलों से लपटी हुई शीतल, मंदसुगन्ध पवन कैसी अच्छी लगती है। वृक्षों पर बैठे हुए पक्षी गण कैसे चहचहा रहे हैं! फूलों पर झूमते हुए मतवाले भौंरे कैसा आनंद दे रहे हैं? और अपने अपने घोंसलों की ओर जाते हुए आकाशविहारी विहङ्गगण चित्त को कैसा प्रसन्न कर रहे हैं! (ऊपर देखकर) यद्यपि सूर्य्य अस्त हो गए हैं, पर तौ भी यहां स्वाभाविक तेज के कारण कहीं अंधेरे का नाम नहीं है।