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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/३८

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नाट्यसम्भव।

वाह पूर्व दिशा में चन्द्रमा का भी उदय हुआ है। थोड़ी देर में जब इसकी निर्मल चांदनी चारों ओर वन में छिटकैगी, तब सङ्गीतकी तरङ्ग ऐसा अपूर्व रंग दरसावेगी कि जिसका अनुभव केवल रसज्ञजनही कर सकते हैं (ठहर कर) अहा! देखते २ तारावली के बीच में गोल पन्द्रमा धमकने लगा।

(नेपथ्य में सनसनाहट)
(सब कान लगाकर सुनते हैं)

दमनक। ऐं! गुरुजी। यह क्या सुनाई देने लगा?

भरत। जान पड़ता है कि कुसुम सरोवर में स्नान कर अप्सरा जन आ रही हैं।

दमनक। (आश्चर्य्य से) क्या! वही अप्सरा, जिनकी कथा पुराणों में सुनी है!

भरत। हां वही।

(सब एक ओर खड़े होते हैं और आकाश मार्ग में आती हुई अप्सराएं दिखाई देती हैं)

दमनक। (अप्सराओं को देखकर मन में) अहा हा हा, धन्यभाग! बलिहारी! २ ऐं। स्वर्ग की स्त्रियां इतनी सुन्दर होती हैं? जो सदा कानों से सुना करते थे; वह आज आंखों से देखा। भला! मृत्युलोक की स्त्रियों में ऐसा-रूप कहां?

रैवतक। (अप्सराओं को देखकर मन में) अहा! यही