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नाट्यसम्भव।
(नेपथ्य में)
"निसि दिन जुग फर जोरि उनाको हमहुं मनाती"।
(सब कान लगा कर जनते हैं और उर्वशी, मेनका, रंभा, तिलोत्तमा आदि अप्सरागन आकर सिंहासन के सामने दूर खड़ी होती हैं)
सब अप्सरा। (देवताओं को प्रणाम कर)
निसि दिन जुग कर जोरि उमा को हमहुं मनाती।
पुनि सुरपुर सुख करन हेत अभि लाख जनातीं॥
वृहस्पति।
करहु अवै उहार वेगि सुरपुर की श्री को
हरहु सकल संताप सहसलोचन के जी को॥
कार्तिकेय। (शक्ति उठा कर)
अबै असुरकुलनारिन को विधवा करि डारौं।
उठहु उठहु अब वीर सची को बेगि उबारौं॥
सब देवता। (अपने २ शस्त्रों को हाथ में उठा कर एक सङ्ग कहते हैं)
अबै असुरकुलनारिन को विधवा करि डारौं।
उठा उठहु अब वीर सची को बेगि उघारौं।
(सब क्रोध नाट्य करते हैं)
(नेपथ्य में)
हे देवताओं तुम्हीं लोगों के बाहुबल के भरोसे हम अभी तक जी रहे हैं। अहा! इन अमृत से बचनों को सुन