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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/७७

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नाट्यसम्भव।

कर हृदय कैसा शीतल हुआ है? (उठहु उठहु अव वीर, इत्यादि पढ़ता हुआ इन्द्र आता है और सब देवता उठ कर प्रणाम करते हैं तथा इन्द्र के बैठने पर सब बैठते हैं)

इन्द्र। (बैठकर और हाथ में वज्र लेकर)

अबै असुरकुलनारिन को विधवा करि डारौं।
उठहु उठहु अव वीर सची को चैगि उवारौं।

(सब देखता अपनार शस्त्र उठाकर क्रोध नाट्य करते हैं)

वृहस्पति। हे पुरंदर! शांत होइए। अब महारानी के उद्धार और राक्षसों के संहार होने में बहुत विलंब नहीं है। क्योंकि भक्तजनों के तीनों तापों के दूर करनेवाले भगवान कमलापति शीघ्रही हमलोगों का क्लेश दूर करेंगे। देखिय-

सोरठा।

हरिपदपदुमपराग वंदी जुग कर जोरि कै।
हेरि सहित अनुराग सकल मनोरथ देत जो।

सबदेवता। (एक सङ्ग) सत्य है! सत्य है!!

इन्द्र। ऐं। अभी तक मुनिवर भरताचार्य ने कृपा क्यों नहीं की? उनके आने में इतना विलंब क्या हो रहा है?

कार्त्तिकेय। वह सुधा सभा में नाट्यशाला की रचना कर रहे हैं। उसे समाप्त करके तुरन्त आवेंगे। आप चिन्ता न करें, वरन तब तक सभा में विराजमान रह कर आप हमलोगों का खेद दूर करें।