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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/७९

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नाट्यसम्भव।


हम सुधर्ना सभा में नाट्यशाला की रचना कर और पात्रों को वेशविन्यास करने की आज्ञा देकर केवल तुम्हें सम्बाद देने के लिए आए हैं। अब बहुत देर करने का कोई प्रयोजन नहीं है। वत्स! सब देवताओं के सङ्ग चलकर अपने चित्त को प्रसन्न और प्रफुल्ल करो।

इन्द्र। (हर्ष से) अहा! हमारे भाग्योदय होने में अब सन्देह नहीं। क्योंकि जिन सहस्रलोचनों से शोकाश्रु वहते थे, उन्हीं में एकाएक आनन्दाश्रु छागए।

सबदेवता । महाराज ! आपके विरहताय दग्ध हृदय को भरताचार्य निःसन्देह शीतल और प्रफुल्लित करेंगे।

भरत । अच्छा तो अब तुम लोग सुधर्मा सभा में चलकर अभिनय देखा।

(इन्द्र। जो आज्ञा।

(एक ओर से दमनक के साथ भरत और दूसरी ओर से इन्द्रादि देवताओं का प्रस्थान)

इति सातवां दृश्य।