बड़ाब्रह्मण्य है। यद्यपि हमारे आने से कुढ़कर इसके राहचर नमुचि ने इसे बहुत कुछ ऊंच नीच समझाया, जोकि हमने ध्यान से जान लिया है, पर फिर भी यह ऐसी भक्ति से हमसे मिला चाहता है कि इसे हृदय से धन्यवाद दिए बिना रहा नहीं जाता।
वज्रदंष्ट्रा। (आगे बढ़कर) स्वामी की जय होय! हे प्रभू! तपोधन देवर्षिवर्य्य आते हैं।
बलि। (आगे बढ़कर ) देवर्षि महेन्दय को हम प्रणाम करते हैं।
नमुचि। तपोधन! हमभी मत्था टेकते हैं।
नारद। (नमुचि की ओर न देखकर) दैत्यकुलभूषण बलिराज! रमापति दिन २ तुम्हारा प्रताप बढ़ावें।
वज्रदंष्ट्र। (आपही आप) अहा ! ऋषिजी ने बहुत अच्छा आशीर्वाद दिया ( गया )
नमुचि। (आपही आप ) ओहो! यह आशीर्वाद तर बढ़ा बिलक्षण है।
बलि। (प्रणाम करके) ब्रह्मनन्दन! यह तो आशीर्वाद नहीं, आपने वरप्रदान किया।
नारद । दैत्यकुलदीपक, भक्तराज, प्रल्हाद के महाप्रतापी ब्रह्मण्य पौत्र को जो कुछ दिया जाय, थोड़ा होगा।
बलि। इस रूपा से हम अत्यन्त कृतार्थ हुए। देवर्षिवर! कृपा कर इस आसन पर विराजिए। ..