सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८०
नाट्यसम्भव।


नारद । (बैठकर) दैत्यराज ! तुम भी विराजो।

बलि। जो आज्ञा।

(नारद के सामने विनीत भाव से बलि बैठता है, उसके बगल में नमुचि खड़ा होता है और यह-दृश्य देखकर इन्द्रादिक देवता बड़े चकित होते हैं)

नारद। दैत्यराज! आज इस समय हम तुम्हारे पास किसी कार्यवश आए हैं।

नमुचि। (आपही आप) जोहनने साया था, सोही भया!

बलि। (हाथ जोड़े हुए) आज्ञा कीजिए।

नमुचि । ( आपही आप ) इतनी उदारता अच्छी नहीं।

नारद। भक्तराज, ब्रह्मण्य, प्रल्हाद के वंश में जन्म लेकर तुमने यह क्या बीरोचित कर्म किया, जो एक अबला पर बल प्रयोग किया!

नमुचि। (मनही मन) हाय हाय! वही इन्द्राणी का प्रसङ्ग जान पड़ता है कि इतना परिश्रम व्यर्थ जायगा और बना बनाया सारा खेल चौपट होगा।

बलि। (आश्चर्य से) हमारे कुल में अभी तक अबलाओं पर । बलात्कार करनेवाला कोई नहीं हुआ, फिर हमारे लिए यह उपालंभ क्यों? नारद। क्यों, तुम बलपूर्वक इन्द्राणी को हरण करके नहीं ले आए हौ?

नमुचि। (आपही आप) अब क्योंकर हम अपने मन