पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१०

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गृहकार्य और सादगी में मद्रासी, महाराष्ट्र और गुजराती महिलाओं को सर्व प्रथम स्थान देना पड़ेगा। विद्या, कला और राष्ट्र-भक्ति में बंगाली महिलाएँ अग्रसर हैं। सौन्दर्य, बलिष्ठ शरीर और वीरता के गुण पंजाब से लिये जा सकते हैं। इसके सिवा प्राचीन भारतीय अतिथि सत्कार की भावना भी वहीं मिलेगी। अत्यन्त सात्विक, सुखी और निर्मल भोलेपन, पवित्र सादगी से जीवन बिताने में ही आनन्द मानने वाली स्त्री उत्तर हिन्दुस्तान में देखने को मिलेगी। राजपूताना और मारवाड़ की स्त्रियों में समाज सुधार का कार्य प्रारम्भ होगया है। उनसे अन्य प्रान्त की स्त्रियाँ रजपूती तेज और मारवाड़ी औद्योगिक ढङ्ग सीख सकती हैं। उनसे पर्दा-प्रथा, लड़कियों के जन्म से खेद, और देर से होनेवाला शिक्षा-प्रसार ये सब दोष दूर किये जा सकते हैं। इन सारी प्रान्तीय भावनाओं के मेल से भारतीय आर्य ललना का निर्माण होगा। बङ्गाली स्त्रियों की केश-रचना, माँग में सिन्दूर भरने की रीति, मद्रास में बालों में पुष्प लगाने की मङ्गलमय पद्धति, तथा राजपूताना और मारवाड़ में छोटी-छोटी लड़कियों के पांवों में अलंकार पहिनाने की प्रथाएँ, इन्हें कौन बुरा कहेगा? परन्तु ये सारी बातें देश, काल और अवसर देखकर करने से आर्य ललना देवी स्वरूप हो सकती है। स्त्री की सेाई हुई शक्ति को जागृत करने का काम पति का है। 'पत्नी कैसी हो।' इस बात के विवेचनशील पति को तदनुरूप जीवन व्यतीत करना चाहिये। हमारे यहाँ की स्त्री को विचार-स्वातंत्र्य प्राप्त है, लेकिन उसका उपयोग करने की उसकी शक्ति कुंठित हो गई है। इसीलिये प्रारम्भ में गृहस्थी में स्वतन्त्रता और बाद में सामाजिक समानाधिकार के प्रश्नों पर ध्यान देना उसके हित में पड़ता है।

कष्ट उठाये बिना जिस प्रकार स्वराज्य नहीं मिल सकता उसी प्रकार विचार और विवेक के बिना स्त्रियाँ भी स्वतन्त्र नहीं हो सकतीं। जन्म से लेकर जीवन के अन्तिम क्षणों तक स्त्री के जीवन-रस का उपयोग करना ही स्वार्थी समाज का ध्येय है। उसे सच्चा विकास, उचित संरक्षण, और जीवन-यात्रा में योग्य सहचरी का स्थान मिलने में अनेक अड़चनें दीखती हैं। इसका निवारण साक्षर स्त्रियों को करना चाहिये। इसीमें गृहराज्य का उदात्त तत्व भरा हुआ है। सृष्टि की रचना ही ऐसी है कि उसमें अनेक प्रकार के परिवर्तन होते ही रहते हैं। वहाँ चिरन्तन कौनसी वस्तु है? यह सारी परिस्थिति देखकर कितनी ही बार मन कुंठित हो जाता है। विचारों में कैसा और कौनसा परिवर्तन करें यह कुछ समझ में नहीं आता।

श्री राधादेवी गोयनका का पुनः एक बार आभार मानते हुए और इसके बाद वे