पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१०९

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हमारा पर्दा - . पर उँगली उठाते हैं, खुले शब्दों में मज़ाक करते हैं, अपमान करते हैं लेकिन भाई तथा बहनों के हृदय तक तो यह बात पहुँचना दूर, उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती । वे समझते हैं कि इन उपहासों के तो हम स्वतः पात्र हैं। हम लोग अति प्राचीन दस पाँच महिलाओं के नाम लेकर स्त्रीत्व के आदर्श की दुहाई दिया करते हैं लेकिन आदर्श भी समय के साथ बदलते रहते हैं । आज का आदर्श हैं मासी की लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई होलकर तथा श्रीमती सरोजिनी नायडू आदि । आज देश इस प्रकार की आदर्श स्त्रिया चाहता है । यदि ये बहिनें हमारे ही समान परदे में रहतीं तो भारत माता की इन लाड़ली बेटियों को आज कौन जानता ? स्त्रियों को आज इतना हीन क्यों समझा जाता है ? इसका उत्तर एक ही है 'वे स्त्रिया हैं इसलिए है किंतु पुरुष चाहे कितने भी अयोग्य हों वे पूजनीय ही बने रहेंगे । पुरुषों से अधिक योग्यता होने पर भी स्त्रिया दासी ही रहेंगी। इस प्रश्न के अतिरिक्त एक मूल प्रश्न यह है कि हमारे यहा कार्यभेद पर ही ऊँच-नीच का मापतोल रहता है । स्त्रिया घर के भीतर रहकर दासी का काम करती हैं । वे घर झाड़ बुहारकर साफ करती हैं, कपड़े धोती हैं, रोटी बनाती हैं, बर्तन घिसती हैं, बच्चों से लेकर बूढ़ों तक की हर प्रकार से सेवा करती हैं । यह सब काम छोटे लोगों के अथात् दासों के ही करने योग्य समझे जाते हैं । यदि स्त्री बीमार हो जाय या कहीं चली जाय तो पुरुष इन सब कामों को नहीं करना चाहता। वह या तो कोई दास दासी रख लेता है नहीं तो होटल की शरण लेता हैं क्योंकि इन कामों को वह ओछे लोगों के योग्य समझता है । तब भला स्त्री के प्रति उसके उच्च भाव कैसे हो सकते हैं ? दूसरा क्षेत्र पुरुष अपने लिये ऊँचा समझ कर सुरक्षित रखता है । कमाना, समाज व्यवस्था करना और आनन्द से रहना आदि । स्त्रियों को यह अधिकार ही नहीं कि वे भी कुछ बुद्धिमान समझे जाने वाले लोगों के कार्य करके दिखा सकें। जिन स्त्रियों को थोड़ासा भी अधिकार, स्वतंत्रता और योग्य शिक्षा मिल जाती हैं वे तुरन्त समाज में चमक उठती हैं | मेरा यह कहना नहीं है कि स्त्रियों को पुरुषों के बराबर कमाने जाना चाहिये लेकिन साथ ही साथ उनपर समाज का भयानक प्रतिबन्ध भी नहीं रहना चाहिए । आज भी कितनी ही स्त्रिया पापडं मुँगोड़ी करके कसीदा काढ़नी और सीना आदि काम करके, अपना तथा अपने बच्चों का पालन करती हैं। लेकिन प्रायः निराधार स्त्रियों ने ही भूख की ज्वाला से झुलसित होकर घर में रहकर स्वयं ही इन कामों को अपनाया है। समाज