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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१०८

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नारी समस्या छोड़े हुए दिखाई देती हैं। अनेक युवक जो परदा निवारण की बातें करते हैं वे भी व्यवहार में असफ़ल दिखाई देते हैं और अनेक बार यह भी सुनने में आता है कि पुरुष तैयार है मगर स्त्रिया परदा-निवारण के लिये तैयार नहीं हैं । पुरुष की ओर से आज़ादी दी जाने पर स्त्रिया स्वतंत्रता के वातावरण में पैर रखते हुए झिझकती हैं। कहीं कहीं पुरुष अपनी कायरता को छिपाने के लिए स्त्रियों के सिर दोष मढ़ देते हैं। पर स्त्रीवर्ग को परदा निवारण न करने का दोष देना अनुचित है। हमें क्या स्त्री और क्या पुरुष सब को मिल कर समाज में क्रांतिमय वातावरण पैदा कर देना ओर उस शक्ति को जगा देना है जिससे हम अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत कर सकें । हमारा सामाजिक जीवन विचारों तक ही सीमित न रहकर क्रिया के क्षेत्र में चला जाय और हमारे समाज के विशाल अंचल से यह परदा प्रथा शीघ्रातिशीघ्र उठकर स्त्रियों को अन्य समाज स्त्रियों के समान स्थान प्राप्त करने योग्य बना सके । युद्ध के कारण आज जो परिस्थिति पैदा हो गई है और रक्षा का बिकट सवाल हमारे सामने आ खड़ा है उसे भी हल करने की शक्ति हममें आ जानी चाहिए । संकट के समय, विनाश के समय, सदियों के कार्य वर्षों में हुआ करते हैं और वर्षों के काम दिनों में होते हैं । संसार की बदलती हुई भयंकर परिस्थिति में यदि जीवित रहना हो तो हमें स्त्रियों के परदा निवारण के कार्य को बड़ी तेजी के साथ करना चाहिये । और उनमें आत्म-विश्वास पैदा करना चाहिये जिससे वे अपने को समझ सकें और अपनी रक्षा कर सकें । सुधारकों पर बहुत बड़ी जवाबदारी है । अब बातों की अपेक्षा क्रियात्मक होना अत्यन्त ज़रूरी है । ठोस कार्य में ही हमारे कर्तव्य की उन्नति और कल्याण है। स्त्रिया जितनी अंधकार में, असावधानी में, अज्ञानता तथा नीची सतह पर रहेंगी और रखी जायगी उतना ही समाज भी अंधकार, अज्ञानता में तथा नीचे धरातल पर रहेगा । यदि किसी राष्ट्र, किसी समाज और घर की उन्नति व अवनति देखनी हो तो उस राष्ट्र, उस समाज और उस घर की स्त्रियों को देखना चाहिये । आज समाज में स्त्रियों का क्या स्थान हैं यह किसी से छिपा नहीं है । और साथ ही साथ समाज भी कहाँ तक गिरा हुआ है यह भी सब समझदार भाई तथा बहिनें जानती हैं । दुःख इस बात का है कि इस गई गुजरी हालत में भी जब कि समाज आखिरी स्वास ले रहा है,इने गिनें सुधारकों को छोड़कर शेष समाज ऐसी गहरी नींद में सोया पड़ा है कि अनेक आघातों के पड़ने पर भी उसकी नींद नहीं उचटती । जब दिनदहाड़े हमारी आंखों के सामने लोग हम