पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सन्तान पर माता का प्रभाव संसार में मनुष्य सब से श्रेष्ठ प्राणी है । वही एक ऐसा प्राणी है जिसे संसार की दिव्य विभूतियों का कुछ न कुछ ज्ञान अवश्य है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि वृक्ष पौधों आदि अचर-पदार्थों में भी इन्द्रिय-ज्ञान है । और वास्तव में चींटी और मक्खी आदि कई प्रकार के कीड़ों के गृह-निर्माण और कौशल देखने योग्य और मनोरंजक होते हैं । वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वृक्ष भी हँसते हैं, रोते हैं, क्रोध करते हैं, घृणा करते हैं, प्रेम करते हैं । यह सब मानते हुए वे सब मनुष्य की कोटि में कदापि नहीं आ सकते । उन्हें मनुष्य के समान अन्तर और बाहर का शान नहीं । मनुष्य समझता है कि समस्त सृष्टि ईश्वर ने मेरे लिये बनाई है । तितली के रंगों को देख उसका मन उछलता है, गिरियों के झरनों की कलकल के साथ उसका मन कलोलें करने लगता है, फूलों की हँसी में वह अपनी हंसी मिला देता है । बसन्त की मस्ती में झूमता हुआ वह भी कायल की कूक के साथ गाने लगता है । तात्पर्य यह कि बाह्य जगत का अन्तर्जगत पर पूरा प्रभाव पड़ता है। दोनों के ऐक्य में मानव के जो उद्गार निकलते हैं वे ही श्रेष्ठ कविता का रूप धारण करते हैं। मनुष्य ही वह प्राणी है जिसे संसार मुट्ठी में दिखाई देता है । अनेक प्रकार के ज्ञान-विज्ञान, तत्वज्ञान आदि के द्वारा उसने संसार के कण कण को खोज डाला है। किन्तु, मनुष्य अपने में मस्त नहीं रहता । वह अपनी मस्ती, अपना अनुभव दूसरों को दे डालना चाहता है । उसने पानी में चलना सीखा, हवा में उड़ना सीखा, संसार के इस छोर पर बैठकर उस छोर से बातें करते जाना । जीवन-मरण के प्रश्न का समझा और आत्मानुभूति की । पर अकेले ही ने यह सब नहीं भोगा है। अनेक प्रकार के दुख संकट अवश्य उसने भोगे पर सुख का भाग सारे संसार को दिया । विष विष स्वयं पी गया और अमृत अमृत संसार का लुटा दिया ।