सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी-समस्या । रोगी की सेवा एवं सद्विचारों का विकाश होता है वहां सुख शान्ति रह सकती है चाहे फिर उस परिवार में पति-पत्नी दो ही प्राणी क्यों न हों । बहुविवाह की प्रथा यद्यपि समय के प्रभाव से बहुत कम हो गई है तो भी सामाजिक दृष्टि से उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है । इस देश में लगभग सभी जातियों में बहु विवाह की प्रथा रही है। समय ने इस दिशा में बहुत कुछ सुधार किया है किन्तु मैथिली ब्राह्मण आज भी कई विवाह करते हैं और जागीरदारों एवं राजों महाराजों में इस जमाने में भी यह प्रथा चालू है । आज यदि एक पत्नी के मरने पर दूसरी शादी जल्दी से नहीं तय हो जाती, तो लोग प्रश्न करते हैं, कि अमुक व्यक्ति में क्या दोष है जो पत्नी के मरने को छै महीने या साल पूरा होने आया, पर अभी तक विवाह नहीं हुआ। इस सम्बन्ध में कई स्त्रियों से मेरी बात हुई है । मेरे यह कहने पर कि अभी आप की बहू का मरे बारह दिन भी नहीं हुए और आपने लड़के की सगाई भी कर ली, उन्होंने उत्तर दिया, यदि महीने पन्द्रह दिन में विवाह न कर लिया जाय तो फिर लड़की जल्दी नहीं मिल सकती । यह है वर की योग्यता ! लड़की मरने पर बहुतसी जगह श्मशान, में ही दूसरे विवाह की बात पक्की हो जाती है, और लड़के के लिये हथलेवे की गुनहगार लड़की का भी आजीवन रोना पड़ता है । जो पुरुष स्त्री के मरने पर साल छै महीने भी बिना स्त्री के नहीं रहना चाहता वही एक अबोध बालिका की समस्त आयु को, उसके उगते अरमानों का समाज के कानूनों की कठोर चक्की में पीस-पीस कर नष्ट कर देता है । वह पुनर्विवाह ही नहीं कर सकती हो सो बात नहीं है । वह अच्छा खा नहीं सकती, अच्छा पहिन नहीं सकती, हँस बोल भी नहीं सकती, यदि अचानक किसी के सामने आ जाय तो अपशकुन ! लिखना, पढ़ना आध्यात्मिक जीवन बिताना संतसंगति में बैठना किसी राष्ट्रोपयोगी संस्था की सेवा में जीवन बिताना आदि किसी प्रकार की भी सुविधा उसके सन्तोष के लिये समाज ने नहीं बना रक्खी है। और दूसरी ओर जवान विधवा बहूबेटी के सामने ६० वर्ष का युद्ध अपनी बहू बेटी से भी कम उमर की स्त्री से विवाह कर निर्लज्जता के साथ मूछों पर खिजाब चढ़ाता रहता है । प्राचीनकाल में यहाँ के बड़े-बड़े वीर विद्वान, चीन, जापान, अमेरिका आदि स्थानों से कन्यायें व्याह लाते थे इसका प्रमाण मिलता है । इसी प्रकार ब्राह्मण को चारों वर्गों में क्षत्रियों को ब्राह्मण छोड़कर अन्य तीन वर्षों में ओर वैश्य को ब्राह्मण क्षत्रिय छोड़कर शेष दो वर्गों में विवाह करने की शास्त्र ने अनुमति दी है। प्राचीनकाल की विवाह सम्बन्धी उदारता और शास्त्राशा को ताक पर रखकर आज एक वर्ण में भी