पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी समस्या ११६ .. तीव्रता के साथ अधिकार कर लेते हैं। इसी लिये उनके मन को उनकी शिक्षा का अधिक सुसंस्कृत बनाने और उच्च भावनाओं को जागृत करने की आवश्यकता है । किन्तु हम देखते हैं प्रारम्भ ही से उनमें हीन भावना जागृत की जाती है । सम्भव है यह दीन भावना, विनय, नम्रता, सहनशीलता और अहंकार रहित होने में मदद देती । किन्तु ज्ञान के साथ नहीं, मूर्खतावश सुशिक्षित कन्यायें अपने प्रति हीन भावना सहन नहीं करना चाहतीं। जब कि वे विनय नम्रता आदि गुणों का खूब पसन्द करती हैं । दहेज प्रथा भी कन्याओं में उदार भावों का जागृत नहीं होने देती। वे देखती हैं धर में उसके दहेज की चिन्ता के मारे माता-पिता बड़े-बढ़े कितने परेशान रहते हैं । और फिर भी सास संसुर आदि दहेज में आये हुए वस्त्राभूषण, वर्तन, मेवा, मिठाई आदि वस्तुओं का हाथ में लेकर इस प्रकार देखते हैं और मोल भाव आकते हैं मानों व्यापारी से उन्हें वे सब चीजें खरीद करनी हैं । यदि सास ससुर आदि को दहेज की वस्तुयें पसन्द आगई तो कन्या बेचारी का दिल उछल पड़ता है नहीं तो ६६ प्रतिशत दहेज नापसन्द होता है और वह भी उन लोगों के द्वारा जो स्वयं अपनी कन्या के दहेज के लिये उतने ही चिंतित हैं और जितना पाया उतना भी देने में असमर्थ हैं । प्राचीन विवाह में दहेज का स्थान नहीं था। सिर्फ दैव विवाह में कन्या दामाद का वस्त्राभूषण से सुसज्जित करके विदा करने का उल्लेख है। दहेज के लिये ठहरौनी या दहेज मांगने की प्रथा को तो मनुस्मृति में स्थान ही नहीं है । मनुस्मृति में तो यहाँ तक कहा है कि बहू के नैहर की कोई भी वस्तु अपने काम में लेना उतना ही पाप है जितना कन्या के ससुराल की । आज बहुत से सनातनी कन्या के घर का पानी भी नहीं पीते किन्तु बहू से अधिकाधिक दहेज लेते हैं। कन्या के घर का पानी न पीने में तो विशेष बुराई नहीं है किन्तु कन्या विक्रय में और बहू का धन लेने में महान पाप है। मनुस्मृति को मानने वाले भाई अपने धार्मिक विचारों का सामंजस्य किस प्रकार बिठाते हैं मालूम नहीं। आज दहेज प्रथा के कारण सुन्दर सुशिक्षित योग्य अन्याओं को योग्य वर मिलना कठिन हो गया है । कहीं-कहीं तो भाता-पिता को घर द्वार बेचकर कन्या का ऋण चुकाना अथात् विवाह करना होता है । समय की उथल-पुथल अब इस अनीति को बहुत दिन न चलने देगी।