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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१६

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तीन
 

लेख विभिन्न परिस्थितियों और मनःस्थितियों में लिखे गये थे। कई बार ऐसे स्थलों का भी उद्घाटन करना पड़ा है जो शायद समाज को न रुचें। कहीं-कहीं कथन में अतिरेक भी सम्भव है। हो सकता है, एकाध स्थल हमारे पुरुषसमाज को कर्ण-कटु लगें। आलंकारिक माधुर्यमयी ऊहा से वहां काम चलाया जा सकता था पर बनावट मुझे न रुची। वैसे नारी-आन्दोलन का विकास पुरुषों का परम कृतज्ञ है। आज यह कौन कहेगा कि उनके तथा नारी के अधिकार और क्षेत्र में संघर्ष है। उनका निर्माण ही इस लिये नहीं हुआ। एक के भाव की सफलता दूसरे के अभाव की पूर्ति में है और यहीं पर अनेक सामाजिक प्रश्नों का समाधान हो जाता है।

लेखों को प्रस्तुत रूप में लाने में स्थानीय विद्यामन्दिर के आचार्य श्री प्रभुदयालजी अग्निहोत्री से बड़ी सहायता मिली है, एतदर्थ मैं उनकी अत्यन्त आभारी हूँ। साथ ही यहाँ मैं श्री भाई ब्रिजलालजी बियाणी के प्रति कृतज्ञता प्रकाश करना अपना कर्त्तव्य समझती हूँ जिनका स्नेहमय प्रोत्साहन मुझे सदा प्राप्त होता रहा है।

यदि इन लेखों से हमारी बहनों का कुछ लाभ हो सका तो मैं अपने परिश्रम को सफल समझूंगी।

--लेखिका