दोषी कौन ?
नारी-समस्या भारत की वर्तमान सामाजिक समस्याओं में प्रमुख स्थान रखती है । माना जाने लगा है कि नारी के उत्थान के बिना समाज, सभ्यता और राष्ट्र का उत्कर्ष असम्भव है । ऐसी हालत में नारी-आन्दोलन का जोर पकड़ना स्वाभाविक है ।
आज भी कुछ लोग कहते हैं कि हम स्त्री-शिक्षा के विरोधी नहीं हैं । हाँ ऐसी शिक्षा के विरोधी अवश्य हैं जो लड़कियों की शालीनता नष्ट करके उन्हें उच्छृंखल और विलास-प्रिय बना दे । बालकों की शिक्षा के सम्बन्ध में यह बात नहीं कही जाती । शिक्षा का फल शीलनाश, उच्छंखलता और विलास की वृद्धि कैसे हुआ, समझ में नहीं आता। क्या इन बातों को भी शिक्षा कहा जा सकता है ? यह तो वही बहाना है जिसके सहारे अंग्रेजों ने हम भारतीयों को निरस्त्र बना रखा है; जिससे हमारा पौरुष-भाव धीरे धीरे नष्ट हो जाय और उनके साम्राज्य पर आँच न आवे । किन्तु राजनीतिक शब्दों में कहने के लिये यह है कि यदि सर्वसाधारण के पास शस्त्र रहेंगे तो लोग उच्छंखल हो जावेंगे और परस्पर लड़ेंगे, मरेंगे। शरीर में बल हो और हाथों में शस्त्र हो तो किसी अंश में उच्छृंखलता आ सकती है किन्तु विद्या से तो उच्छृंखल नष्ट होती है, सभ्यता और विनय आती है । जो चीज दूसरे के लिये अनर्थकारी समझी जाती है वह अपने लिये भी तो वैसी ही होगी, इसे न भूलना चाहिये। अंग्रेजों ने भारतीयों के शस्त्र छीन लिये किन्तु अपने न छोड़े। भारतीयों को दास बनाकर वे उन पर शासन कर सके किन्तु परिणाम-स्वरूप उन्हीं में आज यादवी मची हुई है । और जब तक वे भारत को मानवीय अधिकारों,से वंचित रखेंगे तब तक संसार का यह रक्तपात मिट नहीं सकता । इसी प्रकार नारी के जरा अक्षर-ज्ञान की बात सुनते ही और कुछ स्त्रियों को पढ़ती-लिखती देखते ही कतिपय कट्टरपंथी लोग बौखला उठते हैं। क्या अँग्रेजों के समान उन्हें भी अपनी मनमानी न होने का और