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स्त्रियों पर दोषारोपण
 

पालन, घर-धन्धा और स्वामियों के जी बहलाने का खिलौना बनकर रहने लगे तो वह भी हमारे ही समान निर्बल और नाजुक हो जायगा । यह कहना समस्त नारी जाति का अपमान करना होगा कि स्त्रियाँ रुपया कमाने वाले पति से हृदय से प्रेम नहीं करतीं। हजारों स्त्रियों का जौहर भी क्या स्वार्थिक प्रेम था ? स्त्रियों के इतने स्वार्थ-त्याग और बलिदानों के बाद भी यदि वे स्वार्थी समझी जायँ तो यह उनके गुलाम होने का दण्ड है। गुलामों की इज्जत संसार में कहीं नहीं होती। पुरुष स्वयं अपनी अठारह वर्ष की विधवा लड़की के सामने अपनी पचास साठ साल की आयु में एक अबोध लड़की से उसकी सारी मधुर भावनाओं को कुचलकर विवाह कर लेता है। इसमें भी स्त्री का ही स्वार्थ होगा ? पुरुष पाँच-पाँच, सात सात विवाह कर लेता है यहाँ तक कि पत्नी के जीते जी विवाह कर लेता है । इसमें भी स्त्री का ही स्वार्थ होगा ? स्त्री का जीवन बिगाड़ कर भी पुरुष उदार और समाज में बैठने योग्य बना रहता है। किंतु स्त्री को गहने मिलने की बात तो दूर रही उसे पति का प्रेम न मिलने पर भी वह पति की लाज रखने के लिये उसकी खुशामद करती रहती है और उसे रास्ते पर लाने के लिये कितनी ही स्त्रियाँ अपने आपको मिटा देती हैं । गहने के लिये ही वे पुरुष की सेवा और प्रेम करती हैं यह बात स्त्री को ही नहीं प्रेम को भी जो ईश्वर-स्वरूप है, कलंकित करती है।