पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/४८

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पुरुषों की मनोवृत्ति विज्ञान के प्रसार, शिक्षा की वृद्धि आदि के साथ-साथ भारतीय स्त्री-पुरुष भी अपनीकमजोरियों, अपनी अज्ञता, और कलाहीनता आदि का अनुभव करने लगे हैं । जब तक मनुष्य अपनी कमियों का अनुभव नहीं करता, उसमें आगे बढ़ने की उत्कट इच्छा उत्पन्न नहीं हो जाती, तब तक वह उन कमियों को पूरा करने में असमर्थ रहता है । किन्तु ज्योंही वह जान लेता है कि मैं अन्धकार में पड़ा हुआ हूँ, तुरन्त उठने का प्रयत्न करता है । आज भारतीय स्त्री समाज को अपनी दशा का ज्ञान धीरे-धीरे होने लगा है । वह बहुत शीघ्र उठना चाहता है; किन्तु सदियों की निबलता को शीघ्र हटा देना भी हँसी खेल नहीं। अनेक अशिक्षित बहनें चाहती हैं कि वे भी अन्य स्त्रियों के समान आगे बढ़ें, आख खोलकर दुनिया देखें और नारी कहलाने योग्य बने । अवश्य ही वे अब अपने को समझने लगी हैं । अभी तक स्त्रिया समझती थीं कि हम कुछ नहीं हैं । पुरुषों की इच्छा-दासी होने के सिवा हमारा काई अलग अस्तित्व नहीं है । हम उनकी दासी की भी दासी हैं । जिस वस्तु को पति प्यार करता है, चाहता है, चाहे वह हमें न भावे किन्तु फिर भी उसे प्यार करना हमारा धर्म है । इसी में स्त्री की उदारता है, बड़प्पन है और कल्याण है । यदि स्त्री ऐसा करने में असमर्थ रहती है तो वह आदर्श पत्नी नहीं, स्वार्थीक है । उसे तो लहू का चूंट पीकर, अपनी इच्छाओं का बलिदान कर, मन मसोसकर भी आदर्श बनना ही चाहिये, नहीं तो वह पति के मन से उतर जायगी । हायरी स्त्री-जाति ! जो स्त्रिया पढ़ी-लिखी नहीं हैं, जिन्हें संसार का ज्ञान नहीं वे तो पुरुष की इच्छा दासी हैं ही; किन्तु जो पढ़ी-लिखी हैं उनमें भी अभी वह आत्म-बल कहा कि वे अपनी आत्मा की पुकार सुन सकें । अपवाद हो सकते हैं किन्तु साधारणतया पुरुषों को खुश रखने, रिझाने के लिये ही स्त्रिया अपनी सारी विद्या-बुद्धि