पुस्तकालय) gro समाज का भूत (काहबीब्तहीं पाता । आपने यह कैसे कह दिया ।" "आता है और बहुत बुरी तरह से आता है । किन्तु आपको उसका ज्ञान नहीं है । उनके हाथ का और उनसे स्पर्श किया हुआ खाने से आपके तथा आपके बाल- बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है । अछूत तो अपना पेशा करते हैं । वह उनका कर्तव्य है। आप उन्हें नीच और अपने को उत्तम मानकर उनके और स्वयं अपने साथ अन्याय करती हैं और इसीलिये ईश्वर के सामने अाप दोषी हैं।" कुछ चौंककर और खिज़लाहट प्रकट करती हुई बोलीं-"अच्छा यह तो बताओ कि मुझसे बिना पूछे चौके में कौन जा सकता है ?" "वर्तन स्वच्छ न होने से, हाथों की चूड़ियों और छल्लों में मैल जमा हो जाने के कारण उनमें ऐसे विषले कीटाणु पैदा हो जाते हैं जो भोजन सामग्री में मिलकर स्वास्थ्य को बिगाड़ देते हैं । खाद्य और पेय वस्तुओं को इस तरह की स्वच्छता से बनाना चाहिये जिससे पेट में विषले कीटाणु न जा सकें । यह अस्वच्छता ही अकृत है, मनुष्य नहीं । मनुष्य से घृणा करना पाप है ।” मैंने उत्तर दिया । “क्या करूँ बहिन हमारे यहाँ तो कुछ ऐसे रीति रिवाज़ बना दिये गये हैं जिन्हें अब तोड़ते नहीं बनता।" "बनाने-बिगाड़ने वाले तो हम ही हैं; जो रीति, देश, समाज और व्यक्ति के लिये उपयोगी होती है उसे हम ही बनाया करते हैं। और इसी तरह एक एक कर सब रिवाजें बनी हैं । धीरे-धीरे से रूढ़ि रूप में पड़कर हमारे अज्ञान के कारण समाज में, जड़ जमा बैठी हैं। आज हम इन्हें तोड़ते घबराते हैं सिर्फ इसीलिये कि......'कोई क्या कहेगा ।' किन्तु स्मरण रखिये. कि रूढ़िया कती-धताओं को ही निगल जाती हैं ।
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