पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/५१

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३५ पुरुषों की मनोवृत्ति और पापियों के पास भी हो सकता है किन्तु क्या उन्हें आत्मिक शान्ति, सन्तोषं और सच्चा सुख मिलता है ? क्या संसार उनकी इज्जत करता है ? धनवानों के घर में भी असभ्यता और फूहड़पन का राज्य रहता है। ऐसे घरों में सुख शांति कहाँ ? दूसरे राष्ट्रों के समक्ष तो भारत के किसी भी वर्ग की इज्जत नहीं है। यह अपने ही पापों का फल है। जिन्हें अपनी पतिव्रता स्त्री पर विश्वास न हो, उनका यदि कोई विश्वास न करे तो बुरा क्या है ? आज स्त्री-सुधार के साथ साथ पुरुष-सुधार भी होना अत्यन्त आवश्यक है । पढ़ी लिखी सुधारक स्त्री से यदि पुरुष वैसा ही व्यवहार करता है जैसा आज तक समाज में गुलाम स्त्रियों से होता रहा है तो स्त्री के लिये यह असह्य हो जायगा । वह पहिले से अधिक दुखी हो जायगी जिससे उसका मस्तिष्क और स्वास्थ्य स्ख़राब हो जायगा और घर अशान्ति का अड्डा बन जायगा । पढ़ी लिखी स्त्री का दिल अनपढ़ स्त्री से बहुत कोमल हो जाता है । वैसे वे अनेक विपत्तिया सइने में अधिक मजबूत हो जाती हैं किन्तु तनिक भी अपमान उनके प्राणों का घातक बन जाता है । आज पढ़ीलिखी स्त्री के घर में होने पर पुरुष उसके सम्मान की चिन्ता नहीं करता । वह समझता है कि मैं तो पुरुष हूँ, आज़ाद हूँ; समाज मुझे दोष नहीं दे सकता। केवल स्त्री के कहने से क्या होता है ? समाज के अन्य लोगों की अपेक्षा मेरा व्यवहार अपनी स्त्री के साथ बुरा नहीं है । स्त्री भी बेचारी समाज की अन्य स्त्रियों की हालत देखते हुए अपने अपमान के लहू के चूंट पीती रहतो है, किन्तु उसके हृदय की अशांन्ति को मिटाने की शक्ति परम पिता के सिवा किसी में नहीं।