पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/५३

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एक अन्तरंग चित्र भगवान से प्रार्थना करने लगी- "हे भगवान ! माँ को अब के बार बेटा ही दे दो, नहीं तो हम लोगों की खैरियत नहीं । यदि माँ को चौथी बेटी और हो गई तो हमारी दशा घर के पत्थर से भी बदतर हो जावेगी ।" मालती की बुआ केशर अभी तक कमरे के बाहर बैटी कसीदा काढ़ रही थी। माता के चले जाने पर वह लड़कियों की कार्यवाही बड़े ध्यान से देख रही थी । मालती के उपर्युक्त शब्द सुनकर केशर ने कहा-"अरी, पत्थर होती तो घर बनाने के काम तो आती किन्तु तुम्हें तो रोज सबेरे ही सेर भर रोटी खाने को चाहिय । मालती सहम गई । उसने लज्जा से मुख नीचा कर लिया। उसे अपनी बुआ के कहने का कुछ भी दुःख न हुआ । दुःख उसे इस बात का हुआ कि उसके मुँह से ऐसी बात क्यों निकली | अपने घर वालों के प्रति ऐसे तुच्छ विचार उसके मन में क्यों आये ? मालती मन लगाकर अपना काम करने लगी । इतने ही में माता नौ महीने का पेट लेकर एक पाव कुछ घसीटती, टसकती हुई गोद में डेढ़ साल की बच्ची को लिये पीड़ा से आँखें ततेरती आ पहुँची और दुख से कहा-"तू भी मालती यहाँ आराम से बैठी हुई है । जरा लता को नहीं रखती । कलूटी मेरी जान खाये डालती है । नीचे छोड़ देती हूँ तो मारे घर में ऊधम करती है और मब सामान उलट-पलट डालती है । अभी दादीजी के पूजाघर में बुस गई थी । उन्होंने चन्दन घिसने का पत्थर ही फेंक मारा था किन्तु यह ऐसे ही मरनेवाली नहीं ।” कहते-कहते माता के नेत्रों से टप-टप आँसू गिरने लगे। मालती बेचारी अवाक होकर देखने लगी । उमकी समझ में यह मब किम्मा नहीं आया पर माता का दुख वह जान गई । चट उठकर माता की गोद से लता को ले लिया और कहने लगी-“मा तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है तुम तनिक लेट जाओ . या बैठ जाओ । तबियत अभी खराब हो जायगी । अब तुम पापड़ मत बेलो ।" माता ने तनिक शान्त हो मुस्कुराकर कहा-"पगली, कहीं पापड़ बेलने से भी तबियत खराब होती है। काम करने से तो तबियत अच्छी रहती है। उसके पेट में फिर दर्द उठन लगा किन्तु कराहती हुई कुछ तनकर दर्द सहन करने की चेष्टा करती हुई वह वहीं बैट गई। इतनं ही में पड़ाम से बाजे की ध्वनि सुनाई दी । नाई दृव लकर आया । उसके हाथ में सोने के कड़े, सिर पर रेशमी ज़रीदार केशरिया माफ़ा और बदन पर