पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/५४

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नारी समस्या ३८ लम्बा कोट था । उसने दादीजी के सामने दूब ले जाकर रखी । दादीजी ने दूब उठाकर सिर में लगाई और नाई को पाँच रुपये इनाम देकर बिदा किया । इतने ही में मालिन सब्जी लेकर आई । दादीजी ने उसकी टोकरी में सवा रुपया डाल दिया । पड़ोस में अभी लड़का हुआ था । उसीके उपलक्ष में बाजे सुन पड़े थे । खुशी में घर-घर बधाइयाँ बँटने लगीं। पड़ोस की सभी स्त्रिया लड़का होने का आनन्द मनाने के लिये दौड़ गई । दादीजी भी गई । सभी ने मिलकर खूब गीत गाये । जच्चा को देखने लिये लेडी डाक्टर बुलाई गई। उसके पास एक नर्स भी रखी गई । लेडी डाक्टर को इनाम में एक सोने की जंजीर मिली । जच्चा को खानापीना लेडी डाक्टर की सलाह से ही दिया जाता था । भय था लड़के को कुछ हो जाने का । "मालती मेरी तबियत बहुत खराब है । जरा जल्दी जा दादीजी को बुला तो ला, बेटी ?” मालती की मां ने कराहते हुए कहा । मालती बगीचे में दौड़ती हुई भैया होने का स्वप्न देखती, गीत गाती, दुलराती, लोरी देती, झूमती दादी के पास पहुँची और हॉफते-हॉफते बोली-“दादीजी जल्दी चलिये ।" दादीजी ने आश्चर्य से कहा- "अरी क्या हुआ, अभी तो मैं आई ही हूँ ।” मालती ने कुछ अटकते हुए, कहा- "कुछ नहीं माँ......मा......की तबियत......” । दादीजी-"अच्छा अच्छा, चल जल्दी, हे भगवान ! मुझे भी पोते का मुँह दिखाना।" कहती हुई जूतिया घसीटती घर आई । “क्या है बहू ? तबियत कैसी है ?" बहू आंखों में आँसू भर कर-“मा मेरी तो जान निकली जाती है। कहकर कराहने लगी । सास ने कहा- "अरी जचकी घर में तो चली जा-क्या यहीं जनेगी ?” मेरी मा-"मुझ से चला नहीं जाता ।" "तो पहले ही क्यों न चली गई ?" "मा, मुझे जरासा सहारा दे दो। चली जाऊँगी ।" "बहू को सहारा देती हुई दादी ने पुकारा “अरे रमई, रमई जल्दी जा, दाई को और नाइन को बुला ला ।" फिर दूसरी ओर मुँह फिराकर पुकारा-"बेटा केशर ! ओ बेटा केशर ! ज़रा जल्दी कर बेटा ।" "क्या माँ, क्या करूँ. ?” “अरी, वह निवार वाला पलंग जिसकी निवार कहीं-कहीं चूहों ने कतर डाली है वही । समझी न ? और वही पुरानी गद्दी । पारसाल मैंने तो नई भरवा ली थी और मेरी उतरी हुई गादी है न ? उसे ले आ । एक तकिया और एक चद्दर भी ले आना । बेटा हो तो बहू के लिये विछावन करवा देना । दाई को सब सामान दूर से दे देना । वह बिछा देगी। पड़ोसी ने बेटा होने पर सोने की जंजीर डाक्टरनी को दी है । हम क्या उनसे कम हैं ? बेटा होगा तो हम भी