पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी समस्या सुधार हो गया है । पहिले की बात सुनो तो मालूम हो कि सन्तान के लिये माँ का कितना कष्ट उठाना पड़ता था।” दाई का उपदेश चल ही रहा था कि बहूजी ने एक चीख मारी और बेहोश हो गयीं । उन्हें होश आया तो देखा कि वे टूटी खटिया पर पड़ी हैं और उनके पास लोकापमान से आँखें बन्द किये परमहंस का नाट्य करती एक नवोत्थित कली । घर में मातम था। जैसे आकाश से बज्र टूट पड़ा हो । बहूजी खाट पर पड़ी कभी इसे पुकारती कभी उसे । पर सुनता कौन ? कन्या को जन्म देने का महापातक जो उनसे बन पड़ा था। अाखिर एक दिन बहूजी की अर्थी उस घर से निकली । माँ ने क्षय से तँग आकर पुत्री की ओर से आँखें बन्द कर ली थीं । अब वह ऐसे स्थान का चल पड़ी थीं जहाँ पुत्र-पुत्री में कोई भेद-भाव नहीं रह जाता । औरतें आयीं, आँसू बहे, ब्रह्मपुरी हुई, दीन-दुखियों और कँगालों को भोजन मिला । ठीक उस समय जब कि हजारों की संख्या में ब्राह्मणों को अन्न-वस्त्र लुटाये जा रहे थे बहू की एकमात्र यादगार नन्हीं बच्ची एक धुंट दूध के लिये बिलबिला रही थी। इतने में दादीजी आयीं । दो एक बार हिलाया-डुलाया, चुपकारा किन्तु जब कई बार समझाने बुझाने पर भी उसने दादीजी का शासन मानने से इनकार किया तो दादीजी ने पालने पर पटक देने के साथ उसे गालियों के दो-चार मीठे चूंट भी पिला दिये जिनमें एकाध उसकी माता का स्मरण करा देने वाले आखिर मा नन्हीं बच्ची का वियोग सहन न कर सकी और उसे शीघ्र बुला लिया। अग्रिम वर्ष एक दिन दोपहर के समय अागन में ब्राह्मणा बहूजी के श्राद्ध के उत्तम भोजन के लिये आशीर्वाद दे रहे थे, और बहूजी के पतिजी अपनी नवोढ़ा को उसकी दिवंगत सपत्नी की गुणगाथा सुना रहे थे । - थे।