पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी समस्या - वह तो समाज की रूढ़ि पालने के लिये ऐसा करता है। हमारी बहुतसी महिलायें जानती हैं कि घाघरा-ओढ़नी से साड़ी अच्छी है । अँगिया की अपेक्षा ब्लाउज़ अच्छा है। सिर में बोर न डालकर स्वच्छता से केश बाँधना सुन्दर है। कानों में बहुतसी बालियाँ पहिनने से और मोर के पंख डाल-डाल कर उनमें बड़े-बड़े छिद्र करने की अपेक्षा सिर्फ हल्की सी इयरिंग अच्छी है। गले में अनेक गहने डालने की अपेक्षा एक हलकी सी चेन बहुत काफ़ी है। हाथों में बाजूबन्द और लम्बी चूड़ी न पहिनकेर हल्की और सुन्दर दो चार चूड़ियाँ पर्याप्त हैं। उसी प्रकार पैरों में सेर-सेर दो-दो सेर चाँदी लादकर अपने पाँव में बेड़ी डालने से मुक्त रहना लाभदायक और सुखप्रद है। फिर भी बहुतसी बहिनें यह सब जानती हुई भी वही पहिनती हैं, इच्छा रखते भी उसे छोड़ती नहीं । किस लिये ? शृंगार की दृष्टि से न छोड़ती हों सो बात नहीं है। समाज की रीति पालने के लिये ही वे कष्ट सहकर भी उसे पहनती हैं जो अभी तक उनके पुराने लोगों में चला आया है । वे चाहती हैं कि हम साफ़ सुथरी साड़ी पहिनें । पर समाज में घाघरे का रिवाज़ है । इसलिये वे दिल मसोसकर रह जाती हैं और समाज की रिवाज़ पालने के लिये घाघरा ही पहिनती हैं । वास्तव में यह उनका त्याग है, संयम है और अज्ञानमूलक होने से उस त्याग की-उसी तरह की स्त्रियों को छोड़कर किसी की दृष्टि में कोई कीमत नहीं । हमें यहाँ समाज की दृष्टि से ही वेषभूषा पर विचार करना है व्यक्ति की दृष्टि से नहीं । मारवाड़ी वेषभूषा में, यदि उसे कलात्मक ढंग से पहिना जाये तो सौन्दर्य नहीं, सो बात नहीं । सौन्दर्य है पर सादगी नहीं। और आज का समय सादगी चाहता है। हर वस्तु में हमें सादगी दिखाई देती है। जिसमें सादगी नहीं है वह समय के अनुकूल नहीं है । रहन-सहन में सादगी, वस्त्राभूषण में सादगी, खान-पान में सादगी, 'बोल-चाल, विवाह-सगाई में यहाँ तक कि जन्म-मरण में भी सादगी है और ईश्वराराधन तो सादगी बिना अशक्य ही है । अब आडम्बर और दिखाने का समय नहीं रहा । सेवा और त्याग का समय है। जिन्हें हम फेशनेबुल विदेशी में रँगी हुई कहती हैं उन कतिपय स्त्रियों की वेष- भूषा में भी सिर्फ तीन ही जगह परिवर्तन मिलता है बाको सब -भारतीयता रहती है नाखून, बालों की कटिंग और ऊँची एड़ी के जूते इन तीन वस्तुओं के परिवर्तन के सिवा भारतीय स्त्री की वेषभूषा शुद्ध भारतीय ही रहती है । हाथों या नखों की लाली, अोठों की लाली, आँखों का काजल तो हमारे यहाँ प्राचीन है। आज की भारतीय स्त्रिया