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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/६९

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राजस्थानी वियों के वस्त्राभूषण दृष्टिकोगा बदलता रहता है। आज इस फैशन और सादगी के जमाने में बोर से सौन्दर्य बढ़ने की अपेक्षा घटता ही है। हमारा नारंगी के समान बोर आज सर्चलाइट की उपाधि पा चुका है। मस्तक का यह टिमटिमाता दिया मस्तिष्क में प्रकाश का अभाव सूचित करता है । उसके बोझ से मस्तक में निशान पड़ जाता है और उसके नीचे के बाल उड़ जाते हैं। कभी-कभी तो देखने में आता है कि स्त्रियों के बोर को चोर कैंची से काट ले जाते हैं । ऐसी हालत में धन तो जाता ही है और सौन्दर्य के सा केश, जिनमें बोर गुंथा रहता है वे भी बोर के साथ ही कतर लिये जाते हैं । स्त्रियाँ सिर गुंथाती हैं और मोम लगाती हैं । यह भी अत्यन्त भद्दा रिवाज़ है । एक बार बँध जाने पर बालों में आठ-दस दिनों तक कंघी नहीं हो पाती । सिर में मैल जम जाता है । बदबू आने लगती है और कभी-कभी जू भी पड़ जाती हैं । ऐसी हालत में . बाल शीघ्र पक जाते हैं और गिरने भी लगते हैं। बालों को तीसरे-चौथे दिन धोना चाहिये और हिफाजत के लिये दिन में दो बार कंघी करना चाहिये । हम सिर को सोडे. या साबुन से धोती हैं, यह भी बालों के लिये हानिकारक है । केश धोने के लिये सिक्काकाई, या छाछ उत्तम होते हैं । इसी प्रकार अनेक सुगंधित तैलों के फेर में न पड़कर नारियल या तिली के शुद्ध तेल से बने हुए तेलों का इस्तेमाल करना चाहिये । बालों में प्रतिदिन कंघी करने और अच्छे. तेल की मालिश करने से सफाई और सौन्दर्य के साथ ही साथ मस्तिष्क को भी लाभ होता है । स्वास्थ्य तथा मन पर भी इन बातों का अच्छा असर पड़ता है । अब कानों की बालियों की ओर दृष्टि घुमाइये । उनके वजन से कान गोल हो जाते हैं। कभी-कभी तो कानों के छिद्र तक बालियों के बोझ से फट जाने हैं। फिर न तो वे बाली पहनने के ही काम के रहते हैं और न सुन्दर ही दीख पड़ते हैं । बालियों के इधर-उधर मैल जम जाता है और कभी-कभी चोरों की भी कृपा दृष्टि हो जाती है । कान छिदाते वक्त बच्ची को बहुत तकलीफ़ होती है । कान पक जाने पर माँ तथा बच्ची दोनों को ही अपने हाथों मुफ्त खरीदी हुई मुसीबत का सामना करना पड़ता है। बड़े-बड़े छेद वाले ये कान भी बड़े भद्दे दीखते हैं। नीचे के छेद मोर के पंख डालकर इतने चौड़े बना लिये जाते हैं कि उनमें अँगुली डालकर आसानी से - कानों को उखाड़ा जा सकता है । ऐसी नौबत न आये तोभी कर्णफूल और झुमकों का बोझ कुछ कम कष्टदायक नहीं है । कितनी ही स्त्रियों के कानों के छिद्र तो बोझ से टूट तक जाते हैं और उनकी सौन्दयाभिलाषा मन की मन में रह जाती है । इस प्रकार कानों