पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/६८

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नारी-समस्या ka ही धोती हैं और रज़ाई चार-चार साल में । इसी प्रकार गद्दी-तकियों को तो जन्म भर पूछने की ज़रूरत ही नहीं समझी जाती । अनेक बहिनों से जब इस विषय पर मेरी बातचीत होती है तब वे कहती हैं—यह तो पैसे वालों का काम है जो सफेद दूध- से धुले हुए कपड़ों पर सोयें । लेकिन उन बहिनों को समझ लेना चाहिये कि कपड़ों की धुलाई में बहुत ही कम खर्च होता है। सिर्फ चार पैसे महीने में हम अपने ओढ़ने- बिछाने के कपड़े अपने हाथ से धोकर स्वच्छ रख सकती हैं । बच्चों के कपड़ों के विषय में भी स्त्रियाँ बहुत लापरवाही रखती हैं। इससे बच्चे बेडौल और बीमार रहते हैं । इस लापरवाही के बदले में हमें दिन की सुनहली घड़ियाँ, रात की नींद और डाक्टर की फ़ीस बलिदान-स्वरूप देना पड़ती हैं तथा चिन्ता से नाता जोड़ना पड़ता है । सभ्य समाज के सामने लज्जित होना पड़ता है । बच्चे जितने ही स्वच्छ कपड़ों में रखे जायेंगे उतने ही वे अधिक विकसित हो सकेंगे । बच्चों के लिये जरी के कपड़े बिलकुल ही नहीं बनवाने चाहिये । वे तो हलके और अत्यन्त स्वच्छ कपड़ों में ही खिले हुए फूल के समान मनोहर दिखाई देते हैं । अक्सर हमारी राजस्थानी बहनें अब घाघरे के स्थान पर धोती का व्यवहार भी करने लगी हैं । ये धोतियाँ कभी-कभी तो अत्यन्त महीन और फैन्सी होती हैं जिनसे दूर पर ग्वड़ा व्यक्ति भी वारपार देख सकता है । इन धोतियों के नीचे पेटीकोट न पहने हुए, मैंने अनेकों बहनों को देखा है। इसी प्रकार कीमती अोढ़नी के होने पर भी चोली का प्रयोग न करने वाली बहुत बहनें मेरे सामने से गुज़री हैं । ये बातें अत्यन्त लज्जा- जनक एवं उपहासास्पद हैं किन्तु आश्चर्य तो तब होता है जब हज़ार समझाने पर भी ये बहनें पेटीकोट, चोली आदि का उपयोग करना स्वीकार नहीं करतीं । कितना भदा मालूम होता है उस समय जब अस्तव्यस्त लाइन में राजस्थानी बहनें भारी भरकम लहँगों और ओढ़नियों में लिपटी सड़कों पर चोर के समान छिप-छिप इधर-उधर ताकती चलती हैं । बीसवीं शताब्दी का प्रथमा व्यतीत प्राय हो जाने पर भी ये बहिनें एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पायी हैं। वस्त्रों के समान आभरण भी सौन्दर्य के साधन हैं। उनकी भी अपनी उपयोगिता हैं किन्तु वस्त्रों के समान ही हमारी राजस्थानी बहनों के आभूषणों की भी हालत दर्दनाक है । पहले बोर को ही देखिये । क्या बोर स्त्री के सौन्दर्य की वृद्धि करता है ? हो सकता है, किसी ज़माने में बोर सौन्दर्य का प्रतीक माना जाता रहा हो । किन्तु सौन्दर्य के प्रति जनता का .