पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/७५

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सिनमा और स्त्रियाँ ही ले जाती है । सिनेमा के डायरेक्टर्स भी यही कहते हैं कि हमें और बातों से काई मतलब नहीं; हम जनता के लिये जनता की ही रुचि के अनुसार फिल्में बनाते हैं । यदि डाइरेक्टर्स उत्तरदायित्व समझकर आदर्श और सुरुचिपूर्ण चित्र जनता के सामने रखें तो धीरे-धीरे रद्दी फिल्मों के अभाव में जनता अच्छी फिल्में देखने लगेगी और उसको रुचि में परिवर्तन भी होगा। जबतक फिल्म-निमाताओं की रुचि में काई परिवर्तन नहीं होता तबतक काई भी कुलीन स्त्री सिनेमा में भाग लेकर कला के नाम पर अपनी पवित्रता की हत्या करना पसन्द, न करेगी। पानी में प्रवेश करके भी गीला न होना आसान बात नहीं । भारतीय सभ्यता में तो पति-पत्नी भी किसी के सामने अमयादित बतीव नहीं कर सकते । कला के लिये भी महान साधना की ज़रूरत है । अतः स्पष्ट है कि हर एक आदमी इस रास्ते पर नहीं चल सकता। यदि वह झूठा प्रयत्न करेगा तो गिर पड़ेगा।