सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी-समस्या - कहानिया हिन्दी साहित्य में काफी सम्मान पा चुकी हैं। श्री दिनेश नन्दनी चोरड्या एवं श्री सत्यवती मल्लिक द्वारा जिस गद्य-काव्य का निर्माण हो रहा है वह कविता के अावश्यक बन्धनों से रहित होने पर भी, प्रवाह और माधुर्य लिये हुए है । उपन्यास क्षेत्र में स्त्रियों ने विशेष उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है। फिर भी श्री तेजरानी पाठक का "हृदय का कांटा”, श्री ज्योतिर्मयी ठाकुर का “मधुबन" सुन्दर बन पड़ा है । यदि स्त्रियाँ इस ओर ध्यान दें तो उन्हें अवश्य सफलता मिले । नाटक के क्षेत्र में तो स्त्रियाँ नहीं आ सकीं । इसका कारण स्पष्ट है । हमारे यहाँ नाटकीय वस्तुओं का जानने की सुविधा ही कहाँ है । स्त्रियाँ रंगमंच से बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं । आजकल तो फिर भी कुछ लड़किया स्कूलों में तीसरे दर्जे के रंगमंच से परिचित हो जाती हैं । नाटक में तनिक सी भी कमज़ोरी खटकती है। नाटक लिखने के लिये नाटकीय नियमों से भली प्रकार परिचित होना चाहिये । निबन्ध-साहित्य में भी स्त्रियों ने उल्लेखनीय सहयोग नहीं दिया है । तो भी उनके लेख अनेक सामयिक विषयों पर समय-समय पर निकला करते हैं। समालोचना, साहित्य का उज्वल बनानेवाला साबुन है। जिस साहित्य में समालोचना करने वाले विद्वान निष्पक्ष अधिक होंगे वह साहित्य उतना ही अधिक दिव्य होगा। हिन्दी के आलोचना क्षेत्र में कोई विशेष नारी-प्रतिभा दृष्टिगोचर नहीं हुई । अन्य विषयों में श्री चन्द्रावती लखनपाल ने 'स्त्रियों की स्थिति' 'शिक्षा मनोविज्ञान' ऐसी उच्च कोटि की पुस्तकें लिखकर इस दिशा में बहुत ही सराहनीय कार्य किया है । श्री महादेवी वी के 'अतीत के चलचित्र' और 'श्रृंखला की कड़ियाँ' भी उच्चकोटि के गद्य के सुन्दर नमूने हैं। वर्तमान समय में स्त्रियों की दशा शोचनीय है। आज की नारी प्राचीन नारी की परम्परा में नहीं जान पड़ती । वह अत्यन्त भीरु और डरपोंक है । प्राचीन इतिहास के इतना उज्वल होने पर भी आज उसमें स्त्रियों का अपना दीप्त व्यक्तित्व नहीं है । वे दासता में ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझती हैं । अपने को दास समझना सबसे बड़ा पाप है। यह क्रान्ति का युग है। हमें पहिले ध्वंस और फिर निर्माण करना पड़ेगा। हमारी धार्मिक और सामाजिक व्यवस्थाएँ प्रौढ़ावस्था में बाल्यकाल के वस्त्रों के समान अनुपयुक्त हैं, परन्तु हम यही निर्णय नहीं कर पाते कि वस्त्रों का विकास शरीर के अनुसार होता है या शरीर का विकास वस्त्रों के अनुसार । जीवन वेगवती सरिता के समान आगे