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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/९४

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नारी-समस्या मिलते हैं जो पति-पुत्र माता-पिता के सारे मधुर सम्बन्धों को भुलाकर राष्ट्र के लिये काल के गाल में जाकर अनेक बार बाहर आई हैं। हम कहते हैं वे देविया हैं, वीरांगनायें हैं। हम उन पर फूल चढ़ाते हैं, वन्दना के गीत बनाते हैं, बासू अर्पित करते हैं उनपर श्रद्धा के । पर जब अपने देश का प्रश्न आता है, अपने परिवार में उसके प्रयोग का सवाल उटता है तो हम कतराने लगते हैं । जो देश आज स्त्रियों की मदद पाकर दुगने जोश और ताकत के साथ अपने देश की रक्षा करने और दूसरे देशों को पछाड़ने में लगे हुए हैं, क्या वे अपनी अधूरी शक्ति से ऐसा कर सकते थे ? अन्य देशों में स्त्रियों ने घर और बाहर दोनों क्षेत्र अत्यन्त सावधानी और सतर्कता से सँभाल रखे हैं। वे खेती, कारखाने, आफिस, स्कूल, अस्पताल, नगर-प्रबन्ध शस्त्र-निर्माण आदि सब काम अपने ऊपर लिये हुए हैं । इतना ही नहीं युद्ध-स्थल में भी वे पुरुषों के ही समान वीरता दिग्बला रही है। एक दृश्य लीजिये । चीन के युद्धमंच पर चालीस हजार स्त्रिया फौजी ढंग से चल रही है । उनकी वर्दी फटी पुरानी और मैली है । वह उनके शरीर पर ठीक आती भी नहीं है, क्योंकि उसे उन्होंने युद्ध क्षेत्र से अपने भाई, पति, पिता आदि सम्बन्धियों के मृत शरीर से उतारकर पदिन लिया है, जिन्होंने जापानियों की मशीनगनों की गोलियां का शिकार होकर वीरगति पाई है । चीन के युद्ध क्षेत्र में ये वीरांगनाएँ साहस के साथ आगे बढ़ती हैं और दृढ़ता से लड़ती हैं । तीन महीनों की शिक्षा से ये स्त्रिया दक्ष बन गई हैं । यह अवस्था अकेले चीन की ही नहीं है, युद्धलिप्त प्रत्येक देश की स्त्रियों ने रण कार्य में अपना कर्तव्य - पूरा कर दिखाया है । विदेशों की इन स्त्रियों की वीरता, कार्यकुशलता आदि की बातें सुनकर जब हमारी दृष्टि अपनी बहिनों की ओर जाती है तब असन्तोष और निराशाभरी एक गहरी हूक दिल में उठकर रह जाती है एक दूसरा दृश्य भी घूम जाता है आँखों के सामने । कुछ ही दिन पहले की बात तो है । हाथ में तिरंगा झण्डा लिये हजारों की तादाद में आजादी के नारे लगाती हुई सफेद खद्दर की धोती से श्रावृत्त भारतीय नारियाँ देश के लिये प्राणों को हथेली पर लेकर तीव्र गति से बढ़ती जा रही हैं । तब कैसे कहे कि हमारी नारियों में वीरता नहीं, त्याग नहीं। कमी है तो केवल बलिष्ठ नेतृत्व और जबरदस्त आन्दोलन की । वास्तव में इन स्वाभाभिमानी स्त्रियों ने स्त्रीसमाज की लज्जा रख ली है । फिर भी अभी तक हमारे यहाँ स्त्रियों का घर से बाहर निकलकर स्वतन्त्र रूप से सार्वजनिक कार्यों में हाथबटाना, जन