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कन्यादन

विवाह के बाहरी शोरोगुल में शामिल होना हमारा काम नहीं। इन पवित्रात्माओं की उच्च अवस्था का अनुभव करके उनको अपने आदर्श-पालन में सहायता देना है। धन्य हैं वे संबंधी जो उन दिनों अपने शरारों को ब्रह्मार्पण कर देते हैं। धन्य हैं वे मित्र जो रजोगुणी हँसी का त्यागकर उस काल की महत्ता का अनुभव करके, अपने दिल का नहला धुलाकर, उस एक आर्य-पुत्री की पवित्रता के चिंतन में खो देते हैं। सब मिल-जुलकर आओ, 'कन्यादान का समय अब समीप है । केवल वही संबंधी और वही सखियाँ जो इस आर्य-पुत्री में तन्मय हो रही हैं उस वेदी के अन्दर आ सकती हैं। जिन्होंने कन्यादान के आदर्श के माहात्म्य को जाना है वही यहाँ उपस्थित हो सकते हैं। ऐसे ही पवित्र भावो से भरे हुए महात्मा विवाहमंडप में जमा हैं। अग्नि प्रज्वलित है। हवन की सामग्री से सत्त्वगुणी सुगंध निकल-निकलकर सबको शांत और एकाग्र कर रही है। तारागण चमक रहे हैं । ध्रुव और सप्तर्षि पास ही आ खड़े हुए हैं। चंद्रमा उपस्थित हुआ है। देवी और देवता इस देवलाक में विहार करनेवाली आर्य-पुत्री का विवाह देखने और उस सौभाग्यशीला होने का आशीर्वाद देने आए हैं। समय पवित्र है। हृदय पवित्र है। वायु पवित्र है और देवी देवताओं की उपस्थिति ने सबको एकाग्र कर दिया है। अब कन्यादान का वक्त है। स्त्रियों ने कन्यादान के माहात्म्य के गीत अलापने शुरू किए हैं। सबके रोम खड़े हो रहे हैं। गले रुक रहे हैं। आँसू चल रहे हैं-